Hindi, asked by Gaurav20011, 1 year ago

"मनुष्यता" शीर्षक कविता के माध्यम से कवि मैथिलीशरण गुप्त ने हमें क्या संदेश दिया है? विस्तार पूर्वक समझाइए|

Answers

Answered by Rsrao
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स्वानुभव के धनी, आत्मविश्वास के प्रतीक, अनुपम साधक, विद्रोही एवं समाजचेता कवि कबीर भकितकालीन संत काव्य धारा के आधार स्तम्भ हैं। वे ऐसे युग में उत्पन्न हुए, जो राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक दृषिटयों से न केवल अव्यवसिथत था बलिक अनेकानेक विÑतियों, अन्तर्विरोधों, अंधविश्वासों, विडंबनाओं आदि से ग्रस्त था। ऐसे समय में भारतीय जनता की अन्तर्निहित शकित और अन्तदर्ृषिट से सम्पन्न कबीर का प्रादुर्भाव अंधकार के जन्मजात शत्राु सूर्य की तरह हुआ। अपने स्वानुभव, सहज प्रतिभा एवं जन-चेतना के सहयोग से उन्होंने ऐसी पंकितयाँ कह डालीं, जिनमें से अधिकांश आज भी उतनी ही प्रासंगिक एवं महत्त्वपूर्ण हैं, जितनी मèयकाल में रही होंगी। उन्होंने उपासना का ऐसा मार्ग चलाया, जो हिंदू और मुसलमान दोनों के आडंबर एवं अंधविश्वासपूर्ण, तर्कहीन मान्यताओं का खंडन करता था और उन्हें प्रेम और साधना के सीधे-सच्चे मार्ग पर ले जाना चाहता था। अपने भावों, विचारों एवं सिद्धांतों के प्रचार के लिए कबीर ने जनता की ही सरल, सुबोध, व्यंजक भाषा को अपना माèयम बनाया, उनका काव्य आज भी विचारोत्तेजक एवं प्रेरणादायक है।

पाठयक्रम में निर्धारित उनके काव्यांश का अèययन करने से पहले उनके जीवन, व्यकितत्व और Ñतित्व के विषय में कुछ बातें जान लेना उपयुक्त रहेगा।

कवि परिचय

कबीरदास के जन्म और मृत्यु की तिथियाँ तथा जीवन की घटनाएँ अनिशिचत हैं। कबीरपनिथयों तथा जनसाधारण ने कबीर के जीवन के साथ कुछ ऐसी रहस्यपूर्ण, चमत्कारमयी तथा अलौकिक घटनाएँ जोड़ दी हैं, जिनकी सत्यता का पता लगाना कठिन है। कबीर-पंथ के ग्रन्थों तथा अन्य इतिहासकारों के अनुसार, कबीर का जन्म सं. 1455 (र्इ. सन 1398) और निधन सन 1551 (र्इ. स. 1494) में हुआ। उनका जन्म-स्थान काशी और मृत्यु मगहर कहा जाता है। उनकी जाति और माता-पिता के विषय में भी विविध जनश्रुतियाँ प्रचलित हैं। कबीर ने अपने ग्रन्थों में विभिन्न स्थलों पर अपने को 'जाति जुलाहा नाम कबीरा कहा है। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी मानते हैं कि कबीर के माता-पिता जुलाहा जाति के थे और यह जाति नाथपंथी योगियों की शिष्य थी। इस जाति ने इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया था, पर नाथपंथी योगियों के संस्कार इस जाति में अभी तक बने हुए थे।

कहा जाता है कि कबीर गुरू रामानन्द के आशीर्वाद से एक विधवा ब्राह्राणी से उत्पन्न हुए थे। उसने लोक-लाज के कारण उन्हें लहरतारा नामक तालाब के किनारे छोड़ दिया। वे नीरू और नीमा नामक जुलाहा दम्पति को मिले। उन्होंने उनका पालन-पोषण किया। परन्तु कबीरदास की रचनाओं तथा परवर्ती इतिहासकारों के अनुसार यह बात निराधार सिद्ध हो जाती है। अन्य प्रमाणिक मत के अभाव में नीरू और नीमा ही पालन-पोषण करने वाले माता-पिता माने जाते हैं। कबीरदास ने किसी विधालय में शिक्षा नहीं पार्इ थी, वरन साधु-संगति और अनुभव जन्य ज्ञान प्राप्त किया था। तभी तो वह पूर्ण आत्मविश्वास के साथ कहते हैंµ'मैं कहता औखनि की देखी, तू कहता कागद की लेखी तथा 'मसि कागद छुऔ नहीं, कलम गही नही हाथ। नियमित रूप से शिक्षा न मिलने पर भी कबीरदास ने सत्संग से ज्ञानार्जन किया था। गुरू रामानंद की Ñपा से सब ज्ञान उनके लिए सुलभ हो गया था। कबीर दास ने सम्भवत: अत्यधिक श्रद्धा और आदर के कारण अपने गुरू का नामोल्लेख नहीं किया है परन्तु विद्वानों की धारणा है कि रामानंद उनके गुरू थे। डा. रामकुमार वर्मा, श्री परशुराम चतुर्वेदी आदि विद्वान इस सम्भावना का समर्थन करते हैं। इस बारे में एक दोहा बहुत प्रचलित है-

भकित द्राविड़ ऊपजी, लाये रामानंद।

कबीरदास परगट किया, सन्त दीप नव खण्ड।।

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