मणिना वलयं वलयेन मणि मणिना वलयेन विभाति कविना च विभुर्विभुना च कति कविना विभुना च विभाति सभा भूमेः गरीयसी माता, स्वर्गात् उच्चतरः पिता। जननी जन्मभूमिश्च, स्वर्गात् अपि गरीयसी।। 2।। सूर्य प्रति रजः क्षिप्तं स्वचक्षुषि पतिष्यति 1 गुरुं प्रति कृताऽवज्ञा सा तथा तस्य भाविनी ।। गुणो भूषयते रूपं शीलं भूषयते कुलम्। सिद्धिर्भूषयते विद्यां भोगो भूषयते धनम्।
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Explanation:
मणिना वलयं वलयेन मणि:
मणिना वलयेन विभाति कर: ।
कविना च विभु: विभुना च कवि:
कविना विभुना च विभाति सभा ।।
अर्थ : मणि (रत्न) से कंगन और कंगन से मणि शोभित होता है, कंगन और मणि दोनों से हाथ शोभित होता है । कवि से राजा और राजा से कवि शोभा पाता है, राजा और कवि दोनों से सभा शोभित होती है ।
“गुणो भूषयते रूपं शीलं भूषयते कुलम् ।
सिद्धिर्भूषयते विद्यां भोगो भूषयते धनम् ।।”
(चाणक्य-नीतिः–०८.१५)
अर्थः—गुणों से रूप सुन्दर लगता है, शील कुल को चार चाँद लगा देता है, सिद्धि से विद्या सुशोभित होती है और भोग धन को अलङ्कृत कर देता है ।
सूर्यं प्रति रजः क्षिप्तं स्वचक्षुषि पतिष्यति ।
बुधान् प्रति कृतावज्ञा सा तथा तस्य भाविनी ॥
--आभाणशतकम् ४२
अर्थ :- सूर्य की ओर उडाई गई धूल अपनी ही आँख में गिरती है। उसी प्रकार विद्वान् जनों के विषय में किया हुआ अपमान उसी (करने वाले) के साथ घटेगा।
Explanation:
1:मनी से कंगन की और कंगन से मनी की शोभा होती है| मनी और कंगन से हाथ की शोभा होती है |कभी से राजा और राजा से कभी शोभित होता है और कभी और राजा से सभा की शोभा होती है ||
2
सूर्य की ओर faki हुई धूल अपनी आंखों में गिरेगी| ठीक वैसे ही गुरु के प्रति की गई अवहेलना जो जैसा करता है वैसा ही fal milta hai