मनकी उतप्त वेदना, मन ही मन में बहती थी। चुप रहकर अंतर्मन में, कुछ मौन व्यथा कहती थी।। दुर्गम पथ पर चलने का, वह संभल छूट गया था । अविचल, अविकल वह प्राणी, भीतर से टूट गया था।। इन पंक्तियों में कौन सा रस है? *
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वीर
करुण
वात्सल्य
शांत
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मन की उतप्त वेदना, मन ही मन में बहती थी। चुप रहकर अन्तर्मन में, कुछ मौन व्यथा कहती थी।। दुर्गम पथ पर चलने का वो संबल छूट गया था। अविचल, अविकल वह प्राणी, भीतर से टूट गया था। उपर्युक्त काव्य—पंक्तियों में करुण रस अभिव्यंजित हो रहा है। करुण रस की परिभाषा अनुसार – किसी प्रिय वस्तु अथवा व्यक्ति आदि के अनिष्ट की आशंका या इनके विनाश से हृदय में उत्पन्न क्षोभ या दु:ख को 'करुण रस' कहते हैं।
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