मनसे ईश्वर को याद करो संस्कृत बनाओ
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सादरं समीहताम् ……….. जीवनं प्रदीयताम्। सादरं॥
अनुवाद :
हमें आदर सहित (इन कार्यों को) करना चाहिए। ईश्वर की वन्दना करनी चाहिए। श्रद्धा सहित अपनी मातृभूमि की अच्छी तरह से अर्चना करनी चाहिए। चाहे विपत्ति हो अथवा बिजलियाँ चमक रही हों, अथवा मस्तक पर बार-बार आयुध (हथियार) गिर रहे हों, परन्तु (हमें) धैर्य नहीं खोना चाहिए। वीरता के भाव को बनाये रखना चाहिए। चित्त में निर्भय होकर (हमें) (अपने) कदम आगे बढ़ाने चाहिए (रखने चाहिए)। इस प्रकार (श्रेष्ठ कार्य) आदरपूर्वक करने चाहिए।
यह (मातृभूमि) प्राणदायिनी है, यह (मुसीबतों से) रक्षा करने वाली है। यह (हमें) शक्ति, मुक्ति तथा भक्ति देने वाली है और अमृत देने वाली है। इस कारण तो यह वन्दनीय है, सेवा किये जाने योग्य है। अभिनन्दन किये जाने योग्य है। इसलिए हमें इसमातृभूमि) के लिए अभिमानपूर्वक अपना जीवन दे देना चाहिए। (इस तरह) यह (सारा कार्य) आदरपूर्वक करना चाहिए।
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