Hindi, asked by mangupta289, 9 months ago

Manav Ekta ke Pratik Guru Nanak Dev Ji​

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Answered by rishika79
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Answer:

Explanation:

गुरु नानक देव का इस देश की सामाजिक क्रांति में महत्वपूर्ण स्थान है। राजनीतिक पराभव के कारण उस समय समाज में अनेक प्रकार के अंधविश्वासों, भ्रांतियों और निराशाओं ने जन्म ले लिया था। इसके लिए गुरु नानक ने सदाचार और एक ही ईश्वर उपासना पर बल दिया। वे जीवन भर लोगों को यही बताते रहे कि पूरी मानव जाति एक ही है। इसे रंग, भाषा, नस्ल, धर्म, जाति एवं प्रदेश के साथ जोड़ना ठीक नहीं है। उनका उपदेश था : सब महि जोति-ज्योति है, सोई, तिस दै चानणां सम चाणन होई।' यानी सभी मनुष्य एक ही परमात्मा के अंश हैं और सभी को समान भाव से देखना ही आत्मज्ञान है। लेकिन अपने भीतर समता की भावना विकसित करने के लिए क्या करना चाहिए। नानक कहते थे कि अहंकार छोड़े बिना समता का भाव पैदा नहीं होगा। वे संसार से पलायन के विरुद्ध थे। समाज से हटकर मनुष्य कभी मुक्ति प्राप्त नहीं कर सकता। हमें अपने समाज में ही जीना और मरना है। अत: हमें एकता, साझेदारी और आपसी भाईचारे पर जोर देना चाहिए। उनका कहना था कि उन दीवारों को तोड़ दो, जिनकी बुनियाद झूठे भ्रमों पर आधारित है। और ऐसे पुलों का निर्माण करो, जो एक इंसान को दूसरे इंसान से जोड़ते हैं। नानक कहते थे कि सिर्फ जात-पांत ही नहीं, स्त्री-पुरुष में भी भेद करना मानव समानता में बाधक है। वे नारी के प्रति असीम आदर प्रकट करते हुए कहते हैं 'सो क्या मंदा जानिए, जित जनमे राजान।' जिसने राजाओं और महापुरुषों को जन्म दिया, उस स्त्री को छोटा क्यों कहते हो? उन्होंने समता की भावना पर सर्वाधिक जोर दिया और कहा कि सभी एक ही ईश्वर के नूर हैं। उनके लिए अच्छे मनुष्य की पहचान भी यही थी। अच्छा आदमी वह है, जिसमें समता की भावना हो: ' ऐसे जन विरले जग अंदहि, परख खजाने पाइया। जाति वरन ते भए अतीता, ममता लोभ चुकाया।।' इसके अलावा गुरु नानक निजी सदाचार पर सर्वाधिक जोर देते थे। ' नानक अवगुण जे टरै तेते गल जंजीर। जो गुण होनि ता कटी, अनि से भाई से वीर।। उनका मानना था कि बुराई को छोड़ने पर ही हम अच्छाई ग्रहण कर सकते हैं। समाज में व्याप्त इन्हीं बुराइयों को दूर करने के लिए नानक देव का जन्म इस देश की भूमि पर 23 नवंबर 1469 ई. को हुआ था। गुरु नानक देव ने उन अच्छाइयों पर जोर दिया, जिससे समाज को ऊंचा उठाने में मदद मिले। एक तरह से उनकी शिक्षाएं केवल दर्शन नहीं एक आचार शास्त्र हैं। निम्नलिखित आचरण पर उन्होंने सर्वाधिक जोर दिया- आत्मनिर्भरता, बांट के खाना, दया, विवेक-विचार, विद्या और नम्रता। कबीर साहब और गुरु नानक देव की शिक्षाओं में बहुत समानता है। दोनों ने पाखंड, मिथ्याचार एवं जातिवाद का विरोध किया और उस समय की परिस्थितियों के अनुसार हिन्दू-मुस्लिम एकता पर सर्वाधिक जोर दिया। निराश भारतीयों में भक्ति मार्ग द्वारा उत्साह का संचार किया। लेकिन कबीर की वाणी थोड़ी तीखी थी, जबकि नानक देव की वाणी में नम्रता एवं मिठास अधिक थी। कबीर साहब की शिक्षा भारत तक सीमित रही, परंतु नानक ने दूर देशों में भी जाकर एक परमात्मा एवं मानव एकता पर जोर दिया। यहां तक कि मक्का में भी उन्होंने काबा के पुजारियों को यह शिक्षा दी कि ईश्वर सर्वत्र है। भारत के प्राचीन वेदांत दर्शन के अनुसार, नानक ने भी आत्मा को परमात्मा का ही अंश माना। इस तरह से वे मनुष्य की गरिमा को बढ़ाते रहे। आज जो हमारे देश की स्थिति है, उसमें नानक देव के उपदेश अधिक प्रासंगिक हैं। यदि सभी धर्मावलंबी उनके उपदेशों को हृदय से स्वीकार करें, तो अनेक जटिल समस्याएं सहज ही दूर हो जाएंगी। गुरु जी की अमृत वाणी आज भी गुरु ग्रंथ साहब के पाठों में उपलब्ध है। आवश्यकता है उन उपदेशों को आचरण में उतारने की। आगे चलकर उनकी शिक्षाओं को लेकर ही सिख संप्रदाय का उदय हुआ, जो कला और देश की रक्षा में अपनी अप्रतिम भूमिका निभाता आ रहा है।

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Answered by dackpower
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Answer:

इस धरती पर कई मानव जातियाँ, जातीय समूह और धर्म हैं। धर्म, जिसने लोगों को सभी मनुष्यों के साथ समान व्यवहार करने की शिक्षा दी होगी, एक विभाजनकारी शक्ति के रूप में कार्य किया। 15 वीं शताब्दी में भारत में यह स्थिति थी जब सिख धर्म के संस्थापक, गुरु नानक देव जी, (1469-1539) का जन्म हुआ था।

गुरु नानक ने महसूस किया कि मुसलमानों के लिए दो अलग भगवान नहीं हो सकते, राम हिंदुओं के लिए और अल्लाह मुसलमानों के लिए जैसा कि आम तौर पर लोगों द्वारा दावा किया जाता है। उन्होंने घोषणा की कि पूरी मानवता के लिए केवल एक ईश्वर है; हम उसे किसी भी नाम, अल्लाह, गोबिंद, भगवान, गुरु और राम से प्यार कर सकते हैं। यदि सभी एक ईश्वर में विश्वास करते हैं तो आध्यात्मिक एकता प्राप्त की जा सकती है। उनकी उपासना का तरीका अलग हो सकता है लेकिन उनके बीच एकता स्वाभाविक है अगर उनका लक्ष्य एक है।

गुरु नानक देव ने मानव जाति के भाईचारे और भगवान के पितात्व का दृढ़ता से प्रचार किया। उनका सार्वभौमिक संदेश शांति, प्रेम, एकता, आपसी सम्मान, मानव जाति के लिए सेवा और समर्पण है। उसने लोगों को हिंसा से शांति की ओर मोड़ दिया; दयालु प्राणियों में अत्याचारी परिवर्तित; और दर्दनाक समाजों को आनंदित समुदायों में बदल दिया। सभी धर्मों के लोगों ने उसके संदेश को सुना और अपने बुद्धिमान और पवित्र शब्दों से प्राप्त किया।

भगवान के साथ उनकी भविष्यवाणी के बाद गुरु जी का पहला बयान था "न कोई हिंदू है, न कोई मुसल्मान।" उन्होंने अपना स्पष्ट और प्राथमिक हित किसी भी तत्वमीमांसा सिद्धांत में नहीं, बल्कि केवल मनुष्य और उसके भाग्य में बताया। इसका मतलब है कि अपने पड़ोसी से खुद की तरह प्यार करें

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