Social Sciences, asked by arulchristy4714, 1 year ago

Manav seva hi sachi seva hai nibandh in hindi

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Answered by Udaykant
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प्रसिद्द रसायनशास्त्री नागार्जुन एक राज्य के राजवैद्य थे. बहुत व्यस्त रहते थे इसलिए उन्होंने एक दिन राजा से कहा, ‘मुझे एक सहायक की जरूरत है.’ राजा ने उनके पास दो कुशल युवकों को भेजा और कहा कि उनमें से जो ज्यादा योग्य लगे उसे अपने सहायक के रूप में रख लें. नागार्जुन ने दोनों की कई तरह से परीक्षा ली पर दोनों की योग्यता एक जैसी थी.
नागार्जुन दुविधा में पड़ गए कि आखिर किसे रखें. अंत में उन्होंने दोनों युवकों को एक पदार्थ दिया और कहा, ‘इसे पहचान कर कोई भी एक रसायन अपनी इच्छानुसार बनाकर ले आओ. हां, तुम दोनों सीधे न जाकर राजमार्ग के रास्ते से जाना.’
दोनों राजमार्ग से होकर अपने-अपने घर चले गए. दूसरे दिन दोनों युवक आए. उनमें से एक युवक रसायन बना कर लाया था जबकि दूसरा खाली हाथ आया था.
आचार्य ने रसायन की जांच की. उसे बनाने वाले युवक से उसके गुण-दोष पूछे. रसायन में कोई कमी नहीं थी. आचार्य ने दूसरे युवक से पूछा, ‘तुम रसायन क्यों नहीं लाए?’ उस युवक ने कहा, ‘मैं पहचान तो गया था मगर उसका कोई रसायन मैं तैयार नहीं कर सका. जब मैं राजमार्ग से जा रहा था तो देखा कि एक पेड़ के नीचे एक बीमार और अशक्त आदमी दर्द से तड़प रहा है. मैं उसे अपने घर ले आया और उसी की सेवा में इतना उलझ गया कि रसायन तैयार करने का समय ही नहीं मिला.’नागार्जुन ने उसे अपने सहायक के रूप में रख लिया.
दूसरे दिन राजा ने नागार्जुन से पूछा, ‘आचार्य! जिसने रसायन नहीं बनाया उसे ही आपने रख लिया.
ऐसा क्यों?’ नागार्जुन ने कहा, ‘महाराज दोनों एक रास्ते से गए थे. एक ने बीमार को देखा और दूसरे ने उसे अनदेखा कर दिया. रसायन बनाना कोई जटिल काम नहीं था. मुझे तो यह जानना था कि दोनों में कौन मानव सेवा करने में समर्थ हैं.
बीमार व्यक्ति चिकित्सक की दवा से ज्यादा उसके स्नेह और सेवा भावना से ठीक होता है, इसलिए मेरे काम का व्यक्ति वही है जिसे मैंने चुना है.’ इससे सीख मिलती है कि मानव सेवा ही सच्ची सेवा है.
Answered by AbsorbingMan
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Answer:

मेरे विचार में मानव होने का अर्थ है ऐसा मनुष्य जो सारी उम्र मानवता की सेवा करे। संपूर्ण जीवन अपनी सुख-सुविधाओं को पाने के लिए प्रयत्न करना मानव का धर्म नहीं है। मानव का जन्म मानवता की सेवा के लिए हुआ है।

प्राचीन समय से ही ऋषि-मुनि सेवा करने पर ज़ोर देते हैं। सेवा ऐसा भाव है जिसे करने वाला भी सुख पाता है और जिसकी की जाती है वह भी सुख पाता है। सेवा से किसी का अहित नहीं होता बल्कि दो अनजान प्राणी प्रेम के बंधन में बंध जाते हैं। यही सच्ची ईश्वर की सेवा है।

मनुष्य सारी उम्र अपनी सुख-सुविधा के लिए प्रयासरत्त रहता है। इस प्रकार वह स्वार्थी हो जाता है। ऐसे मनुष्य को मनुष्य की श्रेणी में भी नहीं रखा जाता। कहा जाता है, जो मनुष्य दूसरे के दुखों को दूर करने के उपाय किया करता है, वही सच्चा मनुष्य कहलाने का अधिकारी है।

वही जीवन सही अर्थों में मानव जीवन को सार्थकता देता है। परोपकार, सेवाभाव, प्रेम, कर्मठता, दृढ़ निश्चयी एक मानव के जीवन को सार्थक करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। अतः हमें चाहिए कि इन गुणों को अपनाकर अपने जीवन को सार्थक बनाएँ और मानवता का कल्याण करें।

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