मञ्जूषातः चित्वा उचिताव्ययेन वाक्यपूर्ति कुरुत-(मंजूषा से उचित अव्यय चुनकर वाक्य की पूर्ति कीजिए-)
(तावत्, अपि, एव, यथा, नित्यं, याद्रुश्यम्)
(क) तयोः …………………….. प्रियं कुर्यात्।
(ख) …………………….. कर्म करिष्यसि। तादृशं फलं प्राप्स्यसि।
(ग) वर्षशतैः …………………….. निष्कृति: न कर्तुं शक्या।
(घ) तेषु …………………….. त्रिषु तुष्टेषु तपः समाप्यते।
(ङ) …………………….. राजा तथा प्रजा।
(च) यावत् सफलः न भवति …………………….. परिश्रमं कुरु।
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मञ्जूषातः चित्वा उचिताव्ययेन वाक्यपूर्ति कुरुत-
(तावत्, अपि, एव, यथा, नित्यं, याद्रुश्यम्)
(क) तयोः नित्यम् प्रियं कुर्यात्।
(ख) यादृशम् कर्म करिष्यसि। तादृशं फलं प्राप्स्यसि।
(ग) वर्षशतैः अपि निष्कृति: न कर्तुं शक्या।
(घ) तेषु एव त्रिषु तुष्टेषु तपः समाप्यते।
(ङ) यथा राजा तथा प्रजा।
(च) यावत् सफलः न भवति तावत् परिश्रमं कुरु।
कुछ अतिरिक्त जानकारी :
यह प्रश्न पाठ नीति नवीनतम् - नीति वचन रूपी नवनीत से लिया गया है।
नीतिनवीनतम् मनुस्मृति किस लोगों का संग्रह है जो सदाचार के लिए अत्यंत जरूरी है। इस पाठ में माता पिता तथा हमारे गुरुजनों को आदर और सेवा से खुश करने वाले मनुष्य को मिलने वाले फायदे को बताया गया है।
इस पाठ में अच्छे रास्ते में चलने तथा बुरे कामो को त्यागने आदि शिष्टाचारों का भी वर्णन है।
इस पाठ से संबंधित कुछ और प्रश्न :
शुद्धवाक्यानां समक्षम् ‘आम्’ अशुद्धवाक्यानां समक्षं च नैव’ इति लिखत-(शुद्ध वाक्य के सामने ‘आम्’ और अशुद्ध वाक्य के सामने ‘नैव’ लिखिए-)
(क) अभिवादनशीलस्य किमपि न वर्धते।
(ख) मातापितरौ नृणां सम्भवे कष्टं सहेते।
(ग) आत्मवशं तु सर्वमेव दु:खमस्ति।
(घ) येन पितरौ आचार्यः च सन्तुष्टाः तस्य सर्वं तपः समाप्यते।
(ङ) मनुष्यः सदैव मनः पूतं समाचरेत्।।
(च) मनुष्यः सदैव तदेव कर्म कुर्यात् येनान्तरात्मा तुष्यते।
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समुचितपदेन रिक्तस्थानानि पूरयत-(समुचित पदों से रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए-)
(क) मातापित्रे: तपसः निष्कृति …………………….. कर्तुमशक्या। (दशवर्षेरपि/षष्टिः वर्षेरपि/वर्षशतैरपि)।
(ख) नित्यं वृद्धोपसेविन: …………………….. वर्धन्ते (चत्वारि/पञ्च/षट्)।
(ग) त्रिषु तुष्टेषु …………………….. सर्वं समाप्यते (जप:/तप/कर्म)।
(घ) एतत् विद्यात् …………………….. लक्षणं सुखदु:पयोः। (शरीरेण/समासेन/विस्तारेण)
(ङ) दृष्टिपूतम् न्यसेत् ……………………..। (हस्तम्/पादम्/मुखम्)
(च) मनुष्यः मातापित्रो: आचार्यस्यय च सर्वदा …………………….. कुर्यात्। (पियम्/अप्रियम्/अकार्यम्)
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