Manpasand vasthu ka vijyapan (Rubik's cube) in Hindi.
Answers
Answer:
रुबिक के घन का विज्ञापन:
Explanation:
NOTE : Kindly refer to the attachment first.
किशोर जनरल स्टोअर्स
प्रस्तुत हैं सभी के लिए
⍟ एक शानदार
⍟ एक उपयोगी
⍟ एक कलायुक्त
रुबिक का घन
दिमाख को रखें स्वस्थ
खेले रुबिक का घन मस्त
★ छोटे बच्चे, जवान, बुजुर्ग सबके के लिए
★ विभिन्न रंग में उपलब्ध
★ विभिन्न आकार में उपलब्ध
● संपर्क ●
किशोर जनरल स्टोअर्स,
मूर्ति बाजार,
कल्याण नगर,
नई दिल्ली.
● समय ●
सुबह १० बजे से शाम ५ बजे तक.
● इ - मेल ●
Additional Information:
१. विज्ञापन:
अपने उत्पादन को बेचने के लिए दुकानदार उस उत्पादन का विज्ञापन करता हैं |
विज्ञापन करने से ग्राहक आकर्षित होते हैं |
२. विज्ञापन लेखन:
विज्ञापन तयार करना मतलब विज्ञापन लेखन होता है |
३. विज्ञापन करते वक्त ध्यान में रखे:
१. विज्ञापन जिस वस्तू का करना है, उस वस्तू का नाम बडे तथा आकर्षक अक्षरों में लिखे |
२. विज्ञापन को एक बॉक्स में लिखे | इस से विज्ञापन आकर्षक दिखता है |
३. विज्ञापन हमेशा ५० - ६० शब्दों में ही लिखे | कम लिखने से ग्राहक आकर्षित ना हो और ज्यादा लिखा तो ग्राहक विज्ञापन पढना पसंद नहीं करेंगे |
४. विज्ञापन के अनुसार कोई कविता की पंक्ती अथवा कोई सुवचन लिखे | आप वह विज्ञापन के अनुसार खुद भी तयार कर सकते है |
५. विज्ञापन में हमेशा शब्दों का आकार आवश्यकतानुसार छोटा - बडा करें |
६. विज्ञापन लिखते समय चित्र निकालने की कोई आवश्यकता नहीं है | तथा विभिन्न रंगों का प्रयोग भी ना करें |
७. विज्ञापन में संपर्क तथा कालावधी व समय अवश्य लिखें |
८. विज्ञापन में सूचनानुसार इ - मेल लिखें |
Answer:
विज्ञापन एक कला है । विज्ञापन का मूल तत्व यह माना जाता है कि जिस वस्तु का विज्ञापन किया जा रहा है उसे लोग पहचान जाएँ और उसको अपना लें । निर्माता कंपनियों के लिए यह लाभकारी है । शुरु – शुरु में घंटियाँ बजाते हुए, टोपियाँ पहनकर या रंग – बिरंगे कपड़े पहनकर कई लोगों द्वारा गलियों – गलियों में विज्ञापन किए जाते थे । इन लोगों द्वारा निर्माता कंपनी अपनी वस्तुओं के बारे में जानकारियाँ घर – घर पहुँचा देते थी ।
विज्ञापन की उन्नति के साथ कई वस्तुओं में क्रांतिकारी परिवर्तन हुआ । समाचार – पत्र, रेडियो और टेलिविजन का आविष्कार हुआ । इसी के साथ विज्ञापन ने अपना साम्राज्य फैलाना शुरु कर दिया । नगरों में, सड़कों के किनारे, चौराहों और गलियों के सिरों पर विज्ञापन लटकने लगे । समय के साथ बदलते हुए समाचार – पत्र, रेडियो – स्टेशन, सिनेमा के पट व दूरदर्शन अब इनका माध्यम बन गए हैं ।
आज विज्ञापन के लिए विज्ञापनगृह एवं विज्ञापन संस्थाएं स्थापित हो गई हैं । इस प्रकार इसका क्षेत्र विस्तृत होता चला गया । आज विज्ञापन को यदि हम व्यापार की आत्मा कहें, तो अत्युक्ति न होगी । विज्ञापन व्यापार व बिक्री बढ़ाने का एकमात्र साधन है । देखा गया है की अनेक व्यापारिक संस्थाएँ केवल विज्ञापन के बल पर ही अपना माल बेचती हैं । कुल मिलाकर विज्ञापन कला ने आज व्यापार के क्षेत्र में अपना महत्त्वपूर्ण स्थान बना लिया है और इसलिए ही इस युग को विज्ञापन युग कहा जाने लगा है । विज्ञापन के इस युग में लोगों ने इसका गलत उपयोग करना भी शुरु कर दिया है