manushy jivan me ahinsa ka mahatva is vishay par apne vichar likhiye
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मनुष्य जीवन में अहिंसा का महत्व काफी बड़ा है हम अहिंसा का मार्ग अपना कि कोई भी काम बड़ा सहज भाव से कर सकते हैं जैसे कि गांधी जी ने अहिंसा का मार्ग अपनाया और भारत को अंग्रेजों की गुलामी से बड़े ही सरलता पूर्वक सहज भाव से मुक्त कराया और वहीं दूसरी तरफ हम हिंसा का मार्ग अपना के अपने ही पैर में कुल्हाड़ी मार लेते हैं यदि गांधी जी ने भी उस समय हिंसा का मार्ग अपनाया होता तो ना जाने कितनी और ला से बचाती और हमारे देश के जवानों की अपने जान से हाथ धोना पड़ता इसी कारण मेरे विचार से मनुष्य जीवन में अहिंसा का महत्व बहुत बड़ा है हमें अहिंसा का मार्ग अपनाना चाहिए लेकिन अगर हमारे साथ जरूरत से अधिक हिंसा हो रही हो तो उसमें अहिंसा का मार्ग अपनाने में थोड़ी सी कठिनाई होती है और ऐसे समय में हमें हिंसा का मार्ग अपनाना चाहिए तो हम कह सकते हैं कि मनुष्य जीवन में अहिंसा का एक बहुत ही बड़ा महत्व है।
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देश को आजादी दिलाने में महात्मा गांधी ने बिना किसी शस्त्र के आंदोलन लड़ा और दुनिया को बता दिया कि अहिंसा के रास्ते से सब कुछ जीता जा सकता है। ... उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी ने लाठी और लंगोटी को धारण कर देश को आजाद कराया, यह सबसे बड़ा अहिंसा का उदाहरण है।
मनुष्य सुख का इच्छुक है। वह सुख से जीना चाहता है। उसके सुख में किसी प्रकार की बाधा पहुंचती है तो वह बेचैन हो जाता है। सुख के लिए इतनी गहरी तड़प होने पर भी वह कष्टों से घिर जाता है, क्योंकि सुख का अमोघ साधन है- अहिंसा। जब तक अहिंसा की चेतना नहीं जागती, अल्प मात्र में जागती है, तब तक व्यक्ति हिंसा के सहारे चलता है। हिंसा एक प्रकार का उद्वेग है। उद्वेग के रहते सुख-शांति या आनंद का अनुभव नहीं हो सकता, इसलिए उद्वेगमूलक प्रवृत्ति से बचाव जरूरी है। हिंसा जीवन का एक खतरनाक मोड़ है। इस मोड़ पर घुमाव है, फिसलन है और अंधेरा है। घुमावदार मोड़ों पर प्रकाश की समुचित व्यवस्था हो और ट्रैफिक पुलिस सावधान हो तो दुर्घटनाएं कम होती हैं। अहिंसा का रास्ता कुछ लंबा अवश्य है, पर वहां न तो कोई खतरनाक मोड़ है, न फिसलन है और न अंधकार। ऐसे रास्ते पर व्यक्ति निश्चिंतता के साथ आगे बढ़ता है और समय से पहले ही मंजिल तक पहुंच जाता है। अहिंसा के दो अंग हैं- सापेक्षता और सहअस्तित्व। इनका सृष्टा है अनेकांत। आज संसार एक ऐसे मोड़ पर खड़ा है, जहां से आगे बढ़ने के लिए उसे अनेकांत की जरूरत है। किसी भी व्यक्ति, वस्तु या घटना को भिन्न-भिन्न दृष्टियों से देखना और विरोधी युगलों में समन्वय स्थापित करना- यह अनेकांत है। यही सापेक्षता और सहअस्तित्व का आधार है। अनेकांत की बैसाखी के सहारे मनुष्य शांति की दिशा में प्रस्थान कर सकता है और शांति से जीवन-यापन कर सकता है।
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