Manushya ishwar ko kahan kakan dhundhta firta h?
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मनुष्य ईश्वर यानि भगवान को जगह जगह ढूँढता फिरता है। आसमान में , धरती पर चाँद में रोशनी देनेवाले सूरज में देखने क प्रयास करता है।
मंदिरों मे बसी देव और देवताओं की मूर्तियों में खोजता है। पेड़ों में पत्थरों में देखने का प्रयास करता है।
अपने आप के मन में , बच्चों के मन में नहीं देख पाता । भगवान, देव, ईश्वर, शक्ति सब अपने माता और पिताओं के रूप में , और अपने बच्चे, बीबी , पति के रूप में प्रकट होते हैं। भगवान अपने अंदर ही रहता है। अच्छे काम करनेवालों के दिलों में और आशीर्वाद में रहता है।
मंदिरों मे बसी देव और देवताओं की मूर्तियों में खोजता है। पेड़ों में पत्थरों में देखने का प्रयास करता है।
अपने आप के मन में , बच्चों के मन में नहीं देख पाता । भगवान, देव, ईश्वर, शक्ति सब अपने माता और पिताओं के रूप में , और अपने बच्चे, बीबी , पति के रूप में प्रकट होते हैं। भगवान अपने अंदर ही रहता है। अच्छे काम करनेवालों के दिलों में और आशीर्वाद में रहता है।
kvnmurty:
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मनुष्य ईश्वर को कुंज और वन में ढूंढता रहता है।
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