Manushya ke man mein kya idhar udhar kya ghumta hai
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इसमें कबीरदास जी कहते हैं कि माला को हाथ में लेकर मनुष्य मन को को घुमाता है जीभ मुख के अंदर घूमती रहती है। परन्तु मनुष्य का चंचल मन सभी दिशाओं में घूमता रहता है। मानव मन गतिशील होता है जो बिना विचारे इधर–उधर घूमता रहता है परन्तु ये भगवान् का नाम क्यों नहीं लेता।
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