manushya swayam apna bandhu evam shatru kese hai
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आत्मैव रिपुरात्मनः यह आप ही अपना शत्रु है अर्थात् जो अपने द्वारा अपनेआपका उद्धार नहीं करता वह अपनेआपका शत्रु है। अपने सिवाय इसका कोई दूसरा शत्रु नहीं है। प्रकृतिके कार्य शरीर इन्द्रियाँ मन बुद्धि आदि भी इसका अपकार करनेमें समर्थ नहीं हैं।
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