Social Sciences, asked by divyakanna1932, 1 year ago

मराठी मध्ये दूरदर्शन शाप की वरदान निबंध

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Answered by AbsorbingMan
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वर्तमान समय में टेलीविज़न का बोलबाला है। आज के इस युग में अमीर हो या गरीब सबके घरों में टेलीविज़न अवश्य मिलेगा। टेलीविज़न के बिना एक घर की कल्पना करना असम्भव सा है। यह मनुष्य के मनोरंजन का सबसे महत्त्वपूर्ण अंग बन चुका है। इसलिए यह मनोरंजन का सर्वाधिक लोकप्रिय एवं सुलभ साधन बन चुका है। टेलीविज़न का सामाजिक जीवन पर सीधा प्रभाव पड़ता है। यह मनोरजंन के साथ-साथ ज्ञान में वृद्धि करता है। इसकी लोकप्रियता का ही आलम है कि 143 और नए टी.वी चैनलों ने प्रसारण मंत्रालय से प्रसारण का अधिकार माँगा है। आज इसकी पहुँच गाँव-गाँव तक है।  

आज से 20 साल पहले टेलीविज़न पर दूरदर्शन चैनल का एकछत्र राज था। उसके द्वारा दिखाए जाने वाले कार्यक्रमों का बोलबाला हुआ करता था। उसके द्वारा दिखाए जाने वाले कार्यक्रम जैसे – हम लोग, चित्रहार, चित्रमाला, रामायण, महाभारत, मालगुड़ी डेज़, स्पाइडरमैन आदि थे। दूरर्दशन के द्वारा शिक्षा सम्बन्धित कार्यक्रम भी प्रस्तुत किए जाते थे जिनमें विज्ञान व गणित से जुड़े विषय हुआ करते थे। ज्ञान सम्बन्धी कार्यक्रम बच्चों में खासा लोकप्रिय हुआ करता था। यू.जी.सी में ऐसे बहुत से कार्यक्रम प्रस्तुत किए जाते थे जो बच्चों को उनकी परीक्षा की तैयारी के लिए आवश्यक सामग्री दिया करते थे। पर आज की स्थिति इसके विपरीत है। अब टेलीविज़न में दूरदर्शन का एकछत्र राज नहीं रह गया है। रोज नए चैनल टेलीविज़न में प्रसारित किए जा रहे हैं। ये सब 'केबल ' क्रान्ति के माध्यम से सम्भव हो पाया है।

आज तकरीबन 80-90 चैनल टेलीविज़न में अपने कार्यक्रम प्रस्तुत कर रहे हैं। ये चैनल दर्शकों की माँग व ज़रूरत के आधार पर कार्यक्रम दे रहे हैं। इन टेलीविज़न की दर्शकों तक सीधी पहुँच के कारण युवावर्ग पर इसका अच्छा व बुरा दोनों प्रकार का प्रभाव पड़ रहा है। जहाँ एक ओर हमारे मनोरंजन के लिए यह सशक्त माध्यम है वहीं हमारे लिए जी का जंजाल भी बनता जा रहा है। टेलीविज़न पर अनेकों प्रकार के मनोरंजन के कार्यक्रम प्रस्तुत हो रहे हैं। ये चैनल ज्ञान संबंधी व मनोरंजन संबंधी कार्यक्रम दे रहे हैं। ये चैनल इस बात का खास ध्यान रखते हैं कि दर्शकों को उनकी उम्र व पसंद के मुताबिक ही कार्यक्रम दिए जाएँ। इसलिए इनका प्रभाव दिन प्रतिदिन हमारे दैनिक जीवन में देखने को मिलता है।  

ये चैनल महिलाओं, पुरूषों, बच्चों, वृद्धों, युवा वर्गों और किसी भी व्यवसाय से जुड़े लोगों की पसन्द व ज़रूरतों के अनुसार कार्यक्रम देते हैं। इस प्रकार घर में बैठे-बैठे आप अपनी रूचि के अनुसार कार्यक्रम को देख सकते हैं। इन चैनलों के माध्यम से बाज़ार में उपलब्ध हर छोटे बड़े उत्पादों के विषय में महत्त्वपूर्ण जानकारियाँ हमें प्राप्त हो जाती हैं। इससे उत्पादक बनाने वाली कंपनियों की सीधी पहुँच जनमानस तक होती है जो उत्पादक धारकों व विक्रेताओं दोनों के लिए लाभकारी होता है। समाचार चैनलों के माध्यम से आम जनता को सरकार की नीतियों का पता चलता रहता है। सरकार आम जनता के पक्ष में क्या कार्य कर रही है और क्या नहीं इस विषय में भी इन चैनलों के माध्यम से जनता जागरूक रहती है। टी.वी चैनलों का प्रभाव चूँकि सीधा पड़ता है। इसलिए हमें अधिक सावधान रहने की ज़रूरत है। टी.वी ने जहाँ हमारे युवा वर्ग पर अच्छा प्रभाव डाला है। उनके अध्ययन से सम्बन्धित जानकारियाँ, उन्हें चैनलों द्वारा प्रसारित शिक्षा सम्बन्धी कार्यक्रमों से मिल जाती है। भक्ति व देशभक्ति कार्यक्रमों द्वारा उनका सही मार्गदर्शन होता है और वह दिशा भ्रमित नहीं होते। ज्ञान-विज्ञान प्रतियोगिताओं द्वारा उनका बौद्धिक व मानसिक विकास होता है। वहीं दूसरी ओर इसके बुरे प्रभाव भी पड़े हैं।  

आज टेलीविज़न के माध्यम से जो सेक्स व हिंसा परोसी जा रही है, उससे हमारा युवा वर्ग हिंसा में ज़्यादा घुलता दिखाई पड़ रहा है जिससे समाज में दिन प्रतिदिन खून-खराबा, लड़ाई-झगड़े, चोरी-चकारी की वारदातें बढ़ती जा रही हैं। 20 साल पहले दूरदर्शन में जो कार्यक्रम प्रस्तुत होते थे, वो समाज में सदैव अच्छी सीख का प्रसार करते थे। परन्तु आज के टी.वी चैनलों के नैतिक मूल्यों में गिरावट बनी हुई है। उनका मकसद दर्शकों तक अपनी पहुँच व अपनी टी.आर.पी को बढ़ाना है। इसका समाज पर क्या असर पड़ रहा है, इससे उनका कोई सरोकार नहीं है। कार्यक्रमों में अश्लीलता पर जोर दिया जा रहा है जो हमारी संस्कृति का हिस्सा नहीं है। यह सब पाश्चात्य सभ्यता का अनुसरण करने का ही परिणाम है। इससे हमारी सामाजिक व्यवस्था में बुरा असर पड़ रहा है। टी.वी चैनलों द्वारा प्रसारित अधिकतर कार्यक्रम अपनी लोकप्रियता को बढ़ाने के लिए हिंसा व अश्लीलता से भरे रहते हैं जिसमें सरकार का पूर्ण नियंत्रण न होने से हर चैनल में इन्हें दिखाने की होड़ लगी रहती है। जो हमारे समाज के लिए हानिकारक हैं। हमें चाहिए कि हम इन कार्यक्रमों के प्रति पूरी सावधानी बरतें व अपने बच्चों व युवावर्ग को इनसे दूर रखें क्योंकि यदि हम इन कार्यक्रमों के प्रति लापरवाह हो जाएँगें तो यह कार्यक्रम हमारे बच्चों व युवावर्ग को भ्रमित कर उनको अपने पथ से विचलित कर सकते हैं। हमें चाहिए कि सिर्फ उन्हीं चैनलों व कार्यक्रमों को देखें जो हमारे विकास के लिए आवश्यक हैं न कि हमारे विकास के मार्ग में बाधक हैं।

Disclaimer - Answer provided in Hindi. You may translate it to Marathi.

Answered by Anonymous
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Answer:

दूरदर्शन हे आता आपल्या पूर्ण परिचयाचे झाले आहे. किंबहुना अतिपरिचयाचे झाले आहे. नव्हे, ते आपल्या दैनंदिन जीवनाचा अविभाज्य भाग बनले आहे, असे म्हटले तरी ते चूक ठरणार नाही. कारण आता दूरदर्शन श्रीमंतांबरोबरच मध्यमवर्गीयांच्या घराघरांतून आणि गरिबांच्या झोपड्यांतूनही आढळते. असे दूरदर्शन शाप आहे की वरदान आहे, हा प्रश्न आता सर्वांच्या समोर आहे.bदूरदर्शन ही अशी एक गोष्ट ठरली आहे की तिला जेवढे कौतुक लाभले, तेवढेचbशिव्याशापही तिच्या वाट्याला आले. समाजातील वेगवेगळी माणसे वेगवेगळ्या हेतूंनी दूरचित्रवाणीवरील कार्यक्रम पाहतात. पण बहुसंख्य लोक दूरचित्रवाणी पाहतात ती प्रामुख्याने मनोरंजनाच्या हेतूनेच. आता तर या मनोरंजनासाठी दूरदर्शनवर विविध वाहिन्याही सरसावल्या आहेत.

आपल्या देशात लोकप्रिय झालेले बहुतेक कार्यक्रम हे चित्रपटांवर आधारलेले असतात. लहान मुलांवर चित्रपटातील हिंसेचा, मारामारीचा वाईट परिणाम होतो. अनेकदा चित्रपटांतील हे रंगीत जीवनच त्यांना खरे जीवन वाटू लागते. शाळा-कॉलेजांतील विदयार्थी दूरचित्रवाणीवरील चित्रपट पाहण्यात इतका वेळ घालवतात की स्वत:चा अभ्यास करण्यासाठी त्यांना वेळ उरत नाही. दूरचित्रवाणीवरील मालिकांमधील मारामाऱ्यांचे अनुकरण कॉलेजच्या आवारातही घडू लागते. नको त्या फॅशन्सचे अनुकरण केले जाते. दूरचित्रवाणीच्या कार्यक्रमांत रमणारी माणसे मोकळ्या हवेत फिरणे, खेळणे, पाहुण्यांचे आदरातिथ्य करणे या गोष्टी विसरतात. दूरचित्रवाणीमुळे झालेले मोठे नुकसान म्हणजे वाचनाची आवड कमी झाली. माणसे स्वतंत्र विचार करायला विसरली. या नुकसानीची जाणीव सर्वांना बेचैन करत आहे. पण यांत दूरचित्रवाणीचा दोष आहे का?

दूरचित्रवाणीने आपल्याला कितीतरी चांगल्या गोष्टी दिल्या. सारे विश्व जवळ आणले. विश्वात कोठेही घडणारी घटना आपण घरबसल्या पाहू शकतो. अनेक वाहिन्यांमुळे विविधता आली आहे. दूरचित्रवाणीमुळे अनेक खेळांची माहिती मिळते. ते खेळ प्रत्यक्ष पाहता येतात. थोर विचारवंत, कलावंत यांच्या मुलाखती पाहिल्यावर त्यांना प्रत्यक्ष भेटल्याचाच आनंद आपल्याला मिळतो. 'डिस्कव्हरी 'सारख्या वाहिनीमुळे आपल्या ज्ञानात भर पडते. दूरचित्रवाणीमुळे समाजातील तळागाळातील माणसांना अनेक गोष्टी सहजगत्या शिकता येतात. असे कितीतरी फायदे दूरचित्रवाणीमुळे होऊ शकतात. दूरचित्रवाणीपासून नुकसानच अधिक आहे, असा एकांगी विचार करून त्याला दूर ठेवणे योग्य नाही. दूरचित्रवाणीवरचे कोणते कार्यक्रम पाहायचे याबद्दलचा निर्णय आपणच घेतला पाहिजे. दूरचित्रवाणीचे दाखवले जाणारे दोष हे खरे तर माणसांचे दोष आहेत; दूरचित्रवाणीचे नव्हेत.

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