Hindi, asked by bhumitkajal09, 8 months ago

 'मरदुए क्या जाने कि बच्चों को कैसे खिलाना चाहिए' - इस पंक्ति में निहित व्यंग्य स्पष्ट कीजिए​

Answers

Answered by rekhasingh9670
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Answer:

उनके साथ हँसते-हँसते जब हम घर आते तब उनके साथ ही हम भी चौके पर खाने बैठते थे। वह हमें ही हाथ से, फूल के एक कटोरे में गोरस और भात सानकर (मिलाना, लपेटना, गूँधना) खिलाते थे। जब हम खाकर अफर (भर पेट से अधिक खा लेना) जाते तब मइयाँ थोड़ा और खिलाने के लिए हठ करती थी। वह बाबू जी कहने लगती-आप तो चार-चार दाने के कौर बच्चे के मुँह में देते जाते हैं; इससे वह थोड़ा खाने पर भी समझ लेता है कि हम बहुत खा गए; आप खिलाने का ढंग नहीं जानते-बच्चे को भर-मुँह कौर खिलाना चाहिए।

जब खाएगा बड़े-बड़े कौर, तब पाएगा दुनिया में ठौर (स्थान, अवसर) ।

-देखिए, मैं खिलाती हूँ। मरदुए क्या जाने कि बच्चों को कैसे खिलाना चाहिए, और महतारी (माता) के हाथ से खाने पर बच्चों का पेट भी भरता है।

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