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बहुत समय पूर्व भारत में संस्कृत भाषा का प्रभाव था। बाद में धीरे-धीरे सामान्य जन-साधारण की भाषा के रूप में हिंदी भाषा प्रचलन में थी। इसके बाद भारत पर मुगलों का शासन रहा। हांलाकि उन्होंने अरबी व फारसी को कार्यालय के दस्तावेजों तक ही सीमित रखा लेकिन फिर भी हिन्दी भाषा पर इसका गहरा प्रभाव पड़ा। इसके बाद भारत पर अंग्रेजों का शासन था। अंग्रेज, अंग्रेजी को कार्यालय तक ही नहीं बल्कि आम जीवन में भी प्रयोग में लाये। इस कारण भारतीय भाषा पर अंग्रेजी का प्रभाव बहुत अधिक पड़ा। हांलाकि अंग्रजी शासन से आजादी के बाद जब हिंदी को राष्ट्रभाषा घोषित किया गया तब भी उसे वह सम्मान न मिल पाया जिसकी कल्पना की गई थी।
आजकल जिस किसी को भी देखो वह अंग्रेजी भाषा या किसी अन्य भाषा को सीखने में ज्यादा उत्सुक रहता है। इसका मुख्य कारण यह भी है कि अधिकतर स्थानों पर अंग्रेजी भाषा का ही प्रयोग होता है। और कोई भी व्यक्ति नहीं चाहता कि अंग्रेजी न आने से उसका भविष्य खराब हो। इसलिए हिंदी काम चलाने लायक आ जाये तो बहुत है पर अंग्रेजी अवश्य आनी चाहिये।
इस प्रकार की स्थिति होने का सीधा सम्बन्ध हमारी नीतियों से है। यदि सरकार ऐसी नीति बनाये कि जिससे सभी स्थानों पर हिन्दी भाषा के प्रयोग को प्रमुखता दी जाये तो लोग अपनी राष्ट्रभाषा की ओर ज्यादा आकर्षित होंगे। विदेश में जाने के लिए जिस प्रकार अंग्रेजी की परीक्षा उत्तीर्ण करनी पड़ती है वैसे ही हमें भी अपने देश के नागरिकों एवं बाहर से आकर कार्य करने वालों के लिए हिन्दी भाषा की परीक्षा को उत्तीर्ण करना आवश्यक बनाना चाहिये। इस प्रकार अधिक से अधिक लोग हिन्दी भाषा में पारंगत होंगे एवं प्रयोग करने में उत्साहित भी। विद्यालय स्तर पर भी हमें हिन्दी भाषा के प्रयोग पर जोर देना चाहिये जिससे बच्चे बचपन से ही अन्य भाषाओं के साथ-साथ हिन्दी भाषा में पारंगत हों।
हिन्दी दिवस पर प्रत्येक विद्यालय में हिन्दी भाषा के प्रचार एवं प्रसार के लिए कार्यक्रमों का आयोजन आवश्यक होना चाहिये जिसमें बच्चे बढ़चढ़ कर अपनी भागीदारी करें। पाठ्यक्रम में अन्य भाषाओं के नाटक एवं कहानियों के साथ-साथ हिंदी भाषा में भी प्रमुख साहित्यकारों के नाटक एवं कहानियाँ सम्मिलित करनी चाहियें। अधिकतर लोग निमंत्रण पत्र एवं आपसी पत्राचार में भी अंग्रेजी भाषा का प्रयोग करते हैं। यदि निमन्त्रण पत्र हिन्दी में बनाये जाये तो लोग इन्हें पढ़कर अपनी राष्ट्रभाषा के प्रति अधिक जागरुक होंगे एवं अधिक से अधिक प्रयोग करने पर गौरवान्वित महसूस करेंगे।
राजनैतिक स्तर पर भी हिंदी में भाषण न देकर कई नेता अंग्रेजी में भाषण देते हैं जिसका विरोध करना चाहिये एवं हिंदी में भाषण देने पर जोर दिया जाना चाहिये। यदि देश के नेता यह कदम उठायेंगे तो जनता भी उनके साथ-साथ चलेगी। हिन्दी साहित्य के कई प्रसिद्ध साहित्यकार हैं जिनकी रचनायें अन्य भाषाओं में छप कर पूरे विश्व में छाई हुई हैं जिनमें महादेवी वर्मा, भारतेन्दु हरीशचन्द्र, प्रेमचन्द, अयोध्या प्रसाद उपाध्याय ”हरिऔध“ और भी न जाने कितने साहित्यकार हैं। हम तो इन्हे भूलते जा रहे हैं लेकिन इनकी रचनायें अन्य भाषाओं में प्रकाशित हो कर भारत से बाहर अपना नाम कमा रही हैं। यदि समय रहते हमने सही कदम न उठाया तो भाषा के साथ-साथ यह राष्ट्र भी कमजोर होता जायेगा और अपनी पहचान भी खोता जायेगा।
महाकवि भारतेंदु हरिश्चन्द्र ने भी कहा था – “निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल, बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल“.
अतः भारत की उन्नति के लिए आवश्यक है की भारतवासी ज्यादा से ज्यादा हिंदी का प्रयोग करें.
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