' मशीनी युग ने कितने हाथ काट दिए हैं। '-इस पंकित मैं लेखक ने किस व्यथा की ओर संकेत किया है?
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इस पंकति का मतलब यह हे कि मशीनों के आने से लोगों को रोज़गार नहीं मिल पाता और सब लोग मशीनों से बनी चीज़ें खरीदते हैं न कि लोगों दव्आरा बनाई गई चीज़ें
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लेखक ने उन कारीगरों की तरफ़ संकेत किया है जो हाथ से बनी वस्तुओं से अपना जीवनयापन करते हैं।
आज के मशीनी युग ने उन कारीगरों के हाथ काटकर मानों उनकी रोटी ही छीन ली है। उन कारीगरों का रोजगार इन पैतृक काम धन्धों से ही चलता था।
उसके अलावा उन्होंने कभी कुछ नहीं सीखा था। वे पीढ़ी दर पीढ़ी अपनी इस कला को बढ़ाते चले आ रहे हैं और साथ में रोज़ी रोटी भी चला रहें हैं।
परन्तु मशीनी युग ने जहाँ उनकी रोज़ी रोटी पर वार किया है, वही दूसरी ओर इन बेशकीमती कलाओं का अंत भी किया है।
ऐसी अनगिनत कलाएँ हैं जो लुप्त अवस्था में हैं और इनको करने वाले कारीगर इस युग के अंधकार में खो रहे हैं।
यही वो व्यथा है जो लेखक व्यक्त करना चाहता है। ऐसे कारीगर कला होने पर भी बेकार हो गए और उनकी रोज़ी रोटी भी खत्म हो गई।