Hindi, asked by ishitajalmi, 1 month ago

mask ki atmakatha (autobiography) in hindi.​

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Answered by chaitanyachamoli69
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Answer:

A cloth face mask is a mask made of common textiles, usually cotton, worn over the mouth and nose. When more effective masks are not available, and when physical distancing is impossible, cloth face masks are recommended by public health agencies for disease "source control" in epidemic situations to protect others from virus laden droplets in infected mask wearers' breath, coughs, and sneezes. Because they are less effective than N95 masks, surgical masks, or physical distancing in protecting the wearer against viruses, they are not considered to be personal protective equipment by public health agencies. They are used by the general public in household and community settings as protection against both infectious diseases and particulate air pollution.

Cloth face masks were routinely used by healthcare workers starting from the late 19th century until the mid 20th century. In the 1960s they fell out of use in the developed world in favor of modern surgical masks, but their use has persisted in developing countries. During the COVID-19 pandemic, their use in developed countries was revived due to shortages of surgical masks and respirators, as well as for environmental concerns and practicality.

hope it helps you

Answered by itzsecretagent
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\huge\underline\mathfrak\green{Answer}

ㅤㅤㅤमास्क की आत्मकथा

मैं मास्क नहीं... मैं तो रुई का धागा हूँ। रुई तो कपास हैं। कपास गुजरात और महाराष्ट्र के खेतों में पैदा होती है। बरसात में किसान अपने खेत में कपास के बीज डालता है। कुछ ही दिनों के बाद अंकुर झाँकने लगते हैं। अंकुर पौधा बनता है। किसान की सेवा से पौधे बड़े हो जाते हैं। पौधों में पीले-पीले फूल आ जाते हैं। किसान अपनी धरती माँ को देखता है, कभी आकाश को और फिर अपने पसीने पर नजर डालता है। उसे संतोष होता है।

पीले फूल झड़ने लगते हैं। उनमें कपास को ढोंढी उग जाती है। दशहरे के आस-पास ढोंढ़ी पक जाती है। अपने आप फूटने लगती है। उजली कपास की झाँकी मिल जाती है। किसान कपास को बटोर लेता है। घर में कपास की ढेरी से धीरे-धीरे बीज या बिनौला निकाला जाता है। रुई की राशि इकट्ठी हो जाती है। धुनिया धुनकी से रुई को धुन देता है। किसान देखता है कि बर्फ के समान रुई की ढेरी से उसका ओसारा भर गया। कभी लगता है कि उसके आंगन-ओसारे में उजले-उजले बादल आ गए हैं। उसका मन दीपों का त्योहार मनाने के लिए उतावला हो उठता है।

यात्रा में आगे बढ़ना है। स्त्रियाँ रुई की पूनियाँ बनाती हैं। पूनियाँ से चखें पर सूत काता जाता है। गाँधीजी चखें पर सूत कातते थे। सूत की अंटियाँ बनती हैं। और तब बुनकर अपने करघे पर सूत की अँटियों से सूत को फैलाकर कपड़ा बुनता है। अब करघे के साथ-साथ बड़ी-बड़ी मशीनें हैं। हथकरघा या मशीन पर का बना हुआ मास्क हाट-बाजार में आता है। दुकानों में ये मास्क रखे जाते हैं। यात्रा इतनी लम्बी है।

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