Mata ka Aanchal Namak path se lekhak Ne tatkalin Samaj ke parivarik parivesh ka jo chitran kiya hai use Apne shabdon mein likho
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बालकों के खेल, कुतूहल, माँ की ममता, पिता का दुलार, लोकगीत आदि अनेक प्रसंग इसमें शामिल हैं। शहर की चकाचौंध से दूर गाँव की सहजता को रचनाकार ने आत्मीयता से प्रस्तुत किया है। यहाँ बाल मनोभावों की अभिव्यक्ति करते-करते लेखक ने तत्कालीन समाज के पारिवारिक परिवेश का चित्रण भी किया है।
Mata ka Aanchal Namak path se lekhak Ne tatkalin Samaj ke parivarik parivesh ka jo chitran kiya hai use Apne shabdon mein likho.
माता का आंचल नामक पाठ से लेखक ने तत्कालीन समाज के पारिवारिक परिवेश का जो चित्रण किया है उसे अपने शब्दों में लिखो।
‘माता का आँचल’ पाठ लेखक शिवपूजन सहाय द्वारा लिखा गया उनके बचपन का एक संस्मरण है, जिसमें उन्होंने अपनी माता एवं पिता के साथ बिताए गएबचपन के पलों का वर्णन किया है।
लेखक का अपने पिता के प्रति असीम स्नेह था। उसका ज्यादातर समय अपने पिता के पास ही बीतता था, लेकिन जब भी कोई संकट की घड़ी आती तो लेखक अपनी माता के आँचल में दुबक जाता था। उसे लगता था कि संसार की सबसे सुरक्षित जगह माता का आँचल ही है।
लेखक बचपन में दिन भर अपने दोस्तों के साथ धमाचौकड़ी-मस्ती पर रहता था। कभी किसी बाग के फल तोड़ता माली की डांट सुनने को मिलती तो कभी धूल-मिट्टी में खेलता रहता।
लेखक के पिता धार्मिक स्वभाव के थे वे लेखक की चोटियां बनाकर उसके माथे पर तिलक लगाकर अपने साथ पूजा-पाठ के लिए बैठा लेते थे। लेखक के घर का माहौल पूरा आध्यात्मिक बन जाता था। लेखक और उसके साथी फसल उगाने के लिए चबूतरे के छोर पर बाल्टी को कुआं बना लेते थे और दो लड़के बैल की भांति मोट खींचने लगते, चबूतरा खेत बनता, कंकड़ बीज बनता और वह खेती करके इस तरह फसल पैदा पैदा करने का खेल रचते। लेखक और उसके साथी दावत की योजना बनाने के लिए घड़े का चूल्हा बनाते और दीये की कढ़ाई तथा पानी को घी, धूल को आटा, बालू को चीनी बनाकर भोजन बनाने का खेल रचचे।
लेखक का पूरा दिन यूं ही अपने साथियों के साथ मस्ती में गुजरता था।