mata ka aanchal ( summary)
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यह कहानी मातृ प्रेम का अनूठा उदाहरण है। यह कहानी हमें बताती है कि एक नन्हे बच्चे को सारी दुनिया की खुशियां व सुरक्षा और शांति की अनुभूति सिर्फ मां के आंचल तले ही मिलती है।
कहानी की शुरुवात कुछ इस तरह से होती हैं।
शिवपूजन सहाय के बचपन का नाम “तारकेश्वरनाथ” था। मगर घर में उन्हें “भोलानाथ” कहकर पुकारा जाता था। भोलानाथ अपने पिता को “बाबूजी” व माता को “मइयाँ ” कहते थे। बचपन में भोलानाथ का अधिकतर समय अपने पिता के सानिध्य में ही गुजरता था। वो अपने पिता के साथ ही सोते , उनके साथ ही जल्दी सुबह उठकर स्नान करते और अपने पिता के साथ ही भगवान की पूजा अर्चना करते थे।
वो अपने बाबूजी से अपने माथे पर तिलक लगाकर खूब खुश होते थे। और जब भी भोलानाथ के पिताजी रामायण का पाठ करते , तब भोलानाथ उनके बगल में बैठ कर अपने चेहरे का प्रतिबिंब आईने में देख कर खूब खुश होते। पर जैसे ही उनके बाबूजी की नजर उन पर पड़ती। तो वो थोड़ा शर्माकर , थोड़ा मुस्कुरा कर आईना नीचे रख देते थे। उनकी इस बात पर उनके पिता भी मुस्कुरा उठते थे।
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