मदर टेरेसा पर निबन्ध | A New Essay on Mother Teresa in Hindi
Answers
"मदर टेरेसा"
जब भी समाज सेवी का नाम लिया जाता है, तो मदर टेरेसा का नाम सबसे ऊपर आता है। मदर टेरेसा का जन्म स्थाई अगस्त 1910 मेसेडोनिया के स्कापजे में हुआ था। उनके बचपन का नाम अगनेस गोंझा बोयाजिजू था। यह पांच भाई बहनों में सबसे छोटी थी। अगनेस जब 5 साल की थी तो उनके पिता की मृत्यु हो गई जिसके बाद इनका पालन-पोषण इनकी माता ने किया। जब वे मात्र 12 साल की थी, उन्होंने निश्चय किया कि वह अपना सारा जीवन मानव सेवा में लगा देंगी।
मदर टेरेसा पहली बार 1928 में भारत आई थी। दार्जिलिंग के सेंट टेरेसा स्कूल में मदर टेरेसा ने शिक्षण कार्य किया। मदर टेरेसा ने पश्चिम बंगाल और कोलकाता की झुग्गी झोपड़ी में रहने वाली गरीब में से गरीब लोगों की सेवा का कार्य 1948 में शुरू किया था। झुग्गी झोपड़ी में रहने वाले बच्चों के लिए उन्होंने यह स्कूल का संचालन किया। 7 अक्टूबर 1950 को वेलीन्टर की अनुमति के साथ “मिशनरी आफ चैरिटी संघ” की स्थापना की। मदर टेरेसा पीड़ितों की सेवा में किसी भी तरह का कोई भी पक्षपात नहीं करती हैं। उनका कहना है कि प्यार की भूख रोटी की बुक से कहीं बड़ी है। मदर टेरेसा की मिशन से प्रेरणा लेकर जो सेवक संसार के विभिन्न भागों से भारत आए थे वह तन मन धन से गरीबों की सेवा में संलग्न थे।
मदर टेरेसा ने जिस प्रकार नर सेवा की इनकी कार्यों की दुनिया भर में प्रशंसा हुई। मदर टेरेसा ने जिस प्रकार समाज की सेवा की उनकी सेवाओं के लिए उन्हें विविध प्रकार के पुरस्कारों एवं सम्मानों से सम्मानित किया गया। उन्हें पोपजान तेईसवें का शांति पुरस्कार और धर्म की प्रगति की टेंप्लेटन फाउंडेशन पुरस्कार 1931 में दिया गया। 1962 में मदर टेरेसा को भारत सरकार द्वारा पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया गया ।
1969 में मदर टेरेसा को अंतरराष्ट्रीय समझ के लिए जवाहरलाल नेहरू पुरस्कार से सम्मानित किया गया। मदर टेरेसा को 1979 में नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया। भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार भारत रत्न पुरस्कार से मदर टेरेसा को 1980 में सम्मानित किया गया था।
मदर टेरेसा के अनमोल विचार हमें जिंदगी में कुछ करने की प्रेरणा देते हैं उनका मानना है- यदि हमारे मन में शांति नहीं है तो इसकी वजह है कि हम यह भूल चुके हैं कि हम एक दूसरे के हैं।
यदि आप 100 लोगों को नहीं खिला सकते तो 1 को ही खिलाइए। शांति की शुरुआत मुस्कुराहट से होती है। जहां जाइए प्यार फैलाई ए जो भी आपके पास आए हुए और खुश होकर लौटे। सबसे बड़ी बीमारी कुष्ठ रोग या तपेदिक नहीं है बल्कि अवांछित होना ही सबसे बड़ी बीमारी है।
मदर टेरेसा ने जिस प्रकार अंतःकरण से गरीब गरीबों की सेवा की है, हमें उनके जीवन से प्रेरणा लेकर असहाय बेसहारा लोगों की सहायता करनी चाहिए क्योंकि यह जीवन दूसरों की सेवा करने के लिए समर्पित करना चाहिए क्योंकि हमारे शास्त्रों में भी यही कहा है, अपने लिए कौन जीता जीवन तो उसका सफल है जो दूसरों के लिए जीता है।