मधुऋतु poem Summary
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कविता का सारांश कवि को लगता है मधुर वसंतऋतु पथ भूलकर दो दिन के लिए आ गई है। दुःख के इन दिनों में साथी बनकर आई वसंतऋतु को कवि कुटिया बनाकर उसमें बसाना चाहता है। आकाश और धरती के बीच प्रेम का नीड़ स्थित है। सूखे तिनके जैसे फालतू चीज़ों को वसंत के आगमन पर यहाँ कोई स्थान नहीं है। उन्हें शिशिर के पतझड़ में भाग जाना है। पेड-पौधों पर नये-नये पल्लव खिल रहे हैं। पल्लवों से भरे संसार सबको अच्छा लग रहा है।
मलयानिल की लहरें रोमांचित करते हुए प्रेमी के रूप में आ रहे हैं और प्रेमिका के नयनरूपी कमल को चूम रहे हैं। पूरब से लाल कुसुम के समान उषा खिलेगी और उषा के यह लाल रंग दिन को रंगीन बना देगी। रात के समय अंधकार को पार करके चन्द्रमा की किरणें आएँगी और धरती पर चाँदनी फैला देगी। अंतरीक्ष रात के कण-कण में ओस की बूंदों की वर्षा करेगी। प्रेम-युग्मों के इस एकांत सृजन में हमें कोई बाधा न डालना है और अपने में जो कुछ सुंदर है, उन्हें इनको दे देना हैं।
कवि के शून्य ह्रदय में पथ भूलकर आनेवाली वसंत ऋतु के समान अचानक प्रेमिका आई। व्यथा में साथी बनकर आई प्रेमिका को कवि अपने मन में कुटिया बना देता है। प्रेम विहीन सूखे-तिनके जैसे लोगों को इस प्रेम निवास से अलग किसी सूखे में जाना है। इस प्रेममय वातावरण में कवि के मन में आशा की नई किरणें खिलेंगे। यहाँ प्रेम पुलकित प्रेमी मनलयानिल के समान आकर प्रेमिका के नयन कमल पर चुंबन करेगा। प्रेम की रागात्मक दुनिया में सौन्दर्य की लालिमा फैलाती हुई प्रेमिका आएगी।
रात की वेला में प्रेमानुभूतियों को जगाकर चाँदनी आएगी और प्रकृति में ओस के बूंदों की वर्षा करेगी। कवि का कहना है प्रेम के इस एकांत सृजन में किसी को बाधा उपस्थित नहीं करनी है और अपने में जो कुछ सुंदर है उसे प्रेम यग्मों को आपस में दे देने दें।
मधुऋतु poem Summary :
वसंतऋतु में प्रेम का एकांत सृजन काम होता है। कवि अनुरोध करते हैं कि इस में किसी को बाधा उत्पन्न नहीं करनी है। कवि का उपदेश देते है, की अपने में जो कुछ भी अच्छा,मनमोहक है उसे प्रेम-युग्मों को दे देना है। 'मधुऋतु' में प्रकृति चित्रण, मानवीकरण, सौंदर्यवर्णन, प्रेमानुभूति आदि छायावादी प्रवृत्तियों का सुन्दर निगमन हुआ है।
Explanation:
कविता का सारांश कवि को लगता है मधुर वसंतऋतु पथ भूलकर दो दिन के लिए आ गई है। दुःख के इन दिनों में साथी बनकर आई वसंतऋतु को कवि कुटिया बनाकर उसमें बसाना चाहता है। आकाश और धरती के बीच प्रेम का नीड़ स्थित है। सूखे तिनके जैसे फालतू चीज़ों को वसंत के आगमन पर यहाँ कोई स्थान नहीं है। उन्हें शिशिर के पतझड़ में भाग जाना है। पेड-पौधों पर नये-नये पल्लव खिल रहे हैं। पल्लवों से भरे संसार सबको अच्छा लग रहा है।
मलयानिल की लहरें रोमांचित करते हुए प्रेमी के रूप में आ रहे हैं और प्रेमिका के नयनरूपी कमल को चूम रहे हैं। पूरब से लाल कुसुम के समान उषा खिलेगी और उषा के यह लाल रंग दिन को रंगीन बना देगी। रात के समय अंधकार को पार करके चन्द्रमा की किरणें आएँगी और धरती पर चाँदनी फैला देगी। अंतरीक्ष रात के कण-कण में ओस की बूंदों की वर्षा करेगी। प्रेम-युग्मों के इस एकांत सृजन में हमें कोई बाधा न डालना है और अपने में जो कुछ सुंदर है, उन्हें इनको दे देना हैं।
कवि के शून्य ह्रदय में पथ भूलकर आनेवाली वसंत ऋतु के समान अचानक प्रेमिका आई। व्यथा में साथी बनकर आई प्रेमिका को कवि अपने मन में कुटिया बना देता है। प्रेम विहीन सूखे-तिनके जैसे लोगों को इस प्रेम निवास से अलग किसी सूखे में जाना है। इस प्रेममय वातावरण में कवि के मन में आशा की नई किरणें खिलेंगे। यहाँ प्रेम पुलकित प्रेमी मनलयानिल के समान आकर प्रेमिका के नयन कमल पर चुंबन करेगा। प्रेम की रागात्मक दुनिया में सौन्दर्य की लालिमा फैलाती हुई प्रेमिका आएगी।
रात की वेला में प्रेमानुभूतियों को जगाकर चाँदनी आएगी और प्रकृति में ओस के बूंदों की वर्षा करेगी। कवि का कहना है प्रेम के इस एकांत सृजन में किसी को बाधा उपस्थित नहीं करनी है और अपने में जो कुछ सुंदर है उसे प्रेम यग्मों को आपस में दे देने दें।