Biology, asked by tamtabrijmohan933, 3 months ago

मध्य हिमालय में पाए जाने वाले विभिन्न औषधीय पौधों के नाम​

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Answered by lakshaya98
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भारत के उच्च हिमालयी और मध्य हिमालयी रेंज में पाई जाने वाले गन्द्रायण, कालाजीरा, जम्बू, ब्राह्मी, थुनेर, घृतकुमारी, गिलोय, निर्गुडी, इसवगोल, दुधी, चित्रक, बहेड़ा, भारंगी, कुटज, इन्द्रायण,पिपली, सत्यानाशी, पलास, कृष्णपर्णी, सालपर्णी, दशमूल, श्योनांक, अश्वगंधा, पुनर्नवा, अरण आदि जड़ी बूटियां अब दुर्लभ होती जा रही हैं। इसका कारण जलवायु परिवर्तन और वनों से जड़ी-बूटियों का अवैानिक तरीके से किया जा रहा दोहन को माना जा रहा है।

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Answered by Anonymous
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गेश्वर। (भक्त दर्शन पाण्डेय)। जलवायु परिवर्तन औषधीय वनस्पतियों के लिए बड़ा खतरा बन रहा है। वैश्विक ताप में वृद्धि और अत्यधिक दोहन के कारण हिमालयी रेंज की

बागेश्वर। (भक्त दर्शन पाण्डेय)। जलवायु परिवर्तन औषधीय वनस्पतियों के लिए बड़ा खतरा बन रहा है। वैश्विक ताप में वृद्धि और अत्यधिक दोहन के कारण हिमालयी रेंज की 800 मेडिसिनल गुणों युक्त प्रजातियां विलुप्त होने के कगार पर पहुंच चुकी हैं। दुर्लभ होती जा रही इन वनस्पतियों का नाम रेड बुक में दर्ज हो गया है। यदि औषधीय पौधों के संरक्षण की पहल नहीं हुई तो आयुर्वेद चिकित्सा पर संकट आ जाएगा।

विश्व में औषधीय पौधों की लगभग 2500 प्रजातियां पाई जाती हैं। इनमें 1158 प्रजातियां भारत में हैं। इन औषधीय पौधों की उपयोगिता का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि इनका उल्लेख वेदों में भी किया गया है। इनमें से 81 औषधीय पौधों का वर्णन यजुर्वेद, 341 वनस्पतियों का उल्लेख अथर्ववेद, 341 का उल्लेख चरक संहिता और 395 औषधीय पादपों और प्रयोग का वर्णन सुश्रुत में है।

भारत के उच्च हिमालयी और मध्य हिमालयी रेंज में पाई जाने वाले गन्द्रायण, कालाजीरा, जम्बू, ब्राह्मी, थुनेर, घृतकुमारी, गिलोय, निर्गुडी, इसवगोल, दुधी, चित्रक, बहेड़ा, भारंगी, कुटज, इन्द्रायण,पिपली, सत्यानाशी, पलास, कृष्णपर्णी, सालपर्णी, दशमूल, श्योनांक, अश्वगंधा, पुनर्नवा, अरण आदि जड़ी बूटियां अब दुर्लभ होती जा रही हैं। इसका कारण जलवायु परिवर्तन और वनों से जड़ी-बूटियों का अवैानिक तरीके से किया जा रहा दोहन को माना जा रहा है।

आयुर्वेदाचार्य डा.नवीन चन्द्र जोशी के मुताबिक पिछले कुछ दशकों के भीतर बढ़ती आयुर्वेदिक दवाओं की मांग को पूरा करने के लिए औषधीय पौधों का अत्यधिक दोहन हो रहा है। भारत के हिमालयी रेंज में पाई जाने वाले औषधीय पादपों पर संकट छाया हुआ है। तापमान में बढोतरी से भी जड़ी बूटियां विलुप्त हो रही हैं। मौजूदा समय में 800 प्रजातियां संकटग्रस्त श्रेणी में शामिल हो चुकी हैं। जिस हिमालयी रेंज में यह औषधीय वनस्पतियां बहुतायत में पाई जाती थी वहां पर अब यह दुर्लभ हो चुकी हैं। यहां तक कि विभिन्न बीमारियों में बनने वाली दवाओं में अब इन औषधियों के स्थान पर इनके सब्सीट्यूट का उपयोग किया जा रहा है।

डा.जोशी का कहना है कि हिमालयी रीजन की लगभग सभी प्रजातियों पर इस समय खतरा मंडरा रहा है। इनकी भरपाई और बचाव को लेकर प्रयास नहीं किए गए तो न केवल आयुर्वेद चिकित्सा पर संकट आएगा बल्कि जैव विविधता को भी खतरा पैदा हो जाएगा। गोपेश्वर स्थित जड़ी-बूटी शोध संस्थान के वैानिक डा. विजय भट्ट ने बताया कि औषधीय पौधों की जो प्रजातियां संकट में हैं उनके संरक्षण के प्रयास हो रहे हैं। औषधीय पादपों पर शोध कार्य चल रहे हैं। इनकी नर्सरियां तैयार की जा रही हैं। तराई से लेकर उच्च हिमालयी क्षेत्र तक के काश्तकारों को मेडिसिनल प्लांट की खेती के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है।

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