Hindi, asked by sandhyakushwaha521, 7 months ago

मध्यप्रदेश के दलीय व्यवस्था की प्रकति ​

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Answered by ripusingh0189
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⏩भारत के दलीय व्यवस्था की प्रकृति✔

⏩×मध्यप्रदेश×भारत में दलीय व्यवस्था के निम्नलिखित गुण-धर्म है -

बहुदलीय व्यवस्था

देश का विशाल आकार, भारतीय समाज की विभिन्नता, सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार की ग्राह्यता, विलक्षण राजनैतिक प्रक्रियाओं तथा कई अन्य कारणों से कई प्रकार के राजनीतिक दलों का उदय हुआ है। वास्तव में विश्व में भारत में सबसे ज्यादा राजनैतिक दल हैं। वर्तमान में (200, देश में सात राष्ट्रीय दल, 40 राज्य स्तरीय दल तथा 980 गैर-मान्यता प्राप्त पंजीकृत दल है। इसके अलावा भारत में सभी प्रकार के राजनैतिक दल है-वामपंथी दल, केंद्रीयदल दक्षिण पंथी दल, सांप्रदायिक दल, तथा गैर सांप्रदायिक दल आदि। परिणामस्वरूप त्रिसंकु संसद और त्रिसंकु विधान सभा तथा साझा सरकार का गठन एक सामान्य बात है ।

Answered by brainlysme14
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मध्यप्रदेश के दलों के कार्यक्रमों में उन सम्भावित भौतिक उपलब्धियों की भी व्यवस्था होती है जो सत्ता प्राप्त करने पर उन्हें मिल सकती हैं। वास्तव में, जैसा कि हम भारत में देखते हैं, अधिकांश दल किसी न किसी प्रकार सत्तारूढ़ होना चाहते हैं, चाहे वे प्रचार के लिए यही कहते हैं कि वे सम्प्रदायवाद जैसे दोषों के विरोध पर आधारित विचारधारा के माध्यम से सत्ता में आना चाहते हैं। इस अर्थ में भी राजनीतिक पार्टियाँ, दबाव अथवा हित समूहों से भिन्न होती हैं, क्योंकि हित और दबाव समूहों के तो कोई निर्वाचन क्षेत्र नहीं होते जिनका विश्वास प्राप्त करके वे सरकार बनाने के लिए एक-दूसरे का मुकाबला करें। इस प्रकार राजनीतिक दल, सामूहिक हितों का समन्वय होता है जोकि सामान्य राजनीतिक नीतियाँ लागू करवाना चाहते हैं। उधर, दबाव समूह तो दलों का समर्थन करने वाली सजीव श्जनताश् होती है।

राजनीतिक दलों से भिन्न तथा हित एवं दबाव समूहों की भान्ति श्गुटोंश् को भी किसी राजनीतिक लक्ष्य की प्राप्ति के लिए संगठित नहीं किया जाता। साथ ही, उनका कोई स्थायी संगठन भी नहीं होता। अतः गुटों को लोगों का ऐसा समूह कह सकते हैं जो दलों के भीतर रहते हुए किसी संकीर्ण हित की अभिवृद्धि के लिए प्रयास करते हैं। वे सम्पूर्ण दल को सामूहिक हितों (उदाहरण के लिए चुनाव जीतने) के लिए प्रयत्न नहीं करते हैं।

चुनावों के समय सामान्य हितों तथा राष्ट्रीय एकता को बनाए रखने की सांविधानिक अपील की जाती है। अतः दल-व्यवस्था, मार्क्सवाद के वर्ग-संघर्ष के सिद्धान्त को स्वीकार नहीं कर सकती। इसका अर्थ यह हुआ कि राजनीतिक दल, वर्ग-सीमाओं से ऊपर उठकर कार्य करते हैं। वे संकीर्ण गुट-हितों से भी ऊपर होते हैं। विचारधाराओं और कार्यक्रमों में अंतर होते हुए भी सभी दल सदैव प्रत्येक मुद्दे पर एक-दूसरे का विरोध नहीं करते हैं। अतः राजनीतिक दल, समाज के विविध वर्गों के संगठन होते हैं, जो न्यूनाधिक रूप से स्थायी और व्यवस्थित होते हैं। उनका उद्देश्य, संविधान के अनुकूल, उसकी सीमा में रहते हुए, अपने नेताओं का सरकार पर नियन्त्रण प्राप्त करना या बनाए रखना, तथा इस नियंत्रण के माध्यम से अपने सदस्यों को सभी प्रकार के लाभ प्राप्त करवाना होता है।

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