Matiwali chapter summary
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‘माटी वाली विद्यासागर नौटियाल की एक मर्मस्पर्शी कहानी है। इसमें ‘माटी वाली’ नामक एक विस्थापित (बेघर) स्त्री की कथा कही गई है। हिन्दी शहर में ऐसा कोई नहीं है जो उसे नहीं जानता है। उसके बिना तो मानो टिहरी शहर के कई एक घरों में चूल्हे का जलना तक कठिन हो जाएगा। घरों की सफाई के लिए वही घर-घर माटी वेचती है। वह नाटे कद की एक लाचार बुढ़िया है। उसके पास अपने अच्छे-बुरे के बारे में सोचने का समय नहीं है। एक बार किसी घर की मालकिन में माटी वाली को अपने कंटर की माटी कच्चे आँगन के एक कोने में उड़ेल देने को कहा। इसके बाद उसे दो रोटियाँ दे दी। उसने चुपके से अपने हाथ में थामी उन दो रोटियों में से एक को मोड़कर कपड़े में लपेटकर बाँध लिया। दूसरे को खाने का दिखावा करने लगी। मालकिन द्वारा दी गई चाय को वह सूसू करके रोटी के टुकड़ों के साथ सुड़कने लगी। फिर उसने चाय की खूब तारीफ़ की। फिर उसने आधुनिक जमाने में स्टील के बढ़ते हुए बर्तनों के बारे में मालकिन से कुछ देर बात करती रही। दूसरे दिन भी उसे मिट्टी ले आने के आदेश से दो रोटियाँ मिल गई। उन्हें भी उसने अपने कपड़े में बाँध लिया कि लोग जानें कि वह ये रोटियाँ अपने बुड्ढे के लिए ले जा रही है।
उसका गाँव शहर से दूर है। इसलिए घंटा भर पहुँचने में लग जाता है। पूरा दिन माटाखान में मिट्टी खोदकर अलग-अलग स्थानों में ले जाने में बीत जाता है। उसके पास जमीन का एक टुकड़ा भी नहीं है। उसकी झोपड़ी एक ठाकुमर की जमीन पर खड़ी है। इसके लिए उसे बेगार करनी पड़ती है। माटी बेचने से हुई आमदनी से उसने एक पाव प्याज खरीद उसे तलने को सोचने लगी। फिर उसने सोचा उसका एक ही रोटी खा पाएगा या डेढ। ऐसी सोचती हुई वह घर पहुँची तो उसने देखा कि उसका बुड्ढा अब नहीं रहा। टिहरी बाँध की दो सुरंगों को बंद कर दिया गया है। शहर में पानी भरने लगा हैं शहर में आपाधापी मची हैं। शहरवासी घरों को छोड़कर भागने लगे हैं। पानी भर जाने से सबसे पहले कुछ श्मशान घाट डूब गए हैं। माटी वाली अपनी झोपड़ी के बाहर बैठी है। गाँव के हर आने-जाने वाले से एक ही बात कहती जा रही है-“गरीब आदमी का श्मशान नहीं उजड़ना चाहिए।”