maulvi liaquat ali ka jeevan parichay
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Liaquat Ali Khan, (born Oct. 1, 1895, Karnal, India—died Oct. 16, 1951, Rawalpindi, Pak.), first prime minister of Pakistan (1947–51). Born the son of a landowner, Liaquat was educated at Aligarh, Allahabad, and Exeter College, Oxford. A barrister by profession, like his leader, Mohammed Ali Jinnah, he entered politics in 1923, being elected first to the provincial legislature of the United Provinces and then to the central legislative assembly. He joined the Muslim League and soon became closely associated with Jinnah. By degrees he won first the respect and then the admiration of the Muslim community for his share in the struggle for Pakistan; when independence was won in 1947 and Jinnah became the first governor-general, Liaquat was the obvious choice as prime minister. In this post his achievements were outstanding. If Jinnah founded Pakistan, Liaquat established it, laying down the main lines of policy, domestic and foreign, that afterward guided the country. After Jinnah’s death, Liaquat was acclaimed as qaid-i-millet (“leader of the country”). Liaquat was assassinated in Rawalpindi in 1951 by a Muslim fanatic who resented his steady refusal to contemplate war with India.
Explanation:
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मौलवी लियाकत अली का जन्म इलाहाबाद के महगांव नामक गाँव में हुआ था। १८५७ ई. में इन्होने इलाहाबाद से स्वतंत्रा संग्राम की लड़ाई अंग्रेजो के खिलाफ लड़ी.
महान क्रांतिकारी मौलाना लियाकत अली खान। ब्रितानिया हुकूमत में जब-जब यह नाम लिया जाता था तो अंग्रेज कांप उठते थे। नाम की इतनी दहशत थी कौशाम्बी के महगांव निवासी क्रांतिकारी मौलाना लियाकत अली खान की। वर्ष 1857 में क्रांतिकारियों की अगुवाई करते हुए मौलाना ने इलाहाबाद की सदर तहसील पर कब्जा किया। कई अंग्रेज मारे गए थे और आधे से ज्यादा भाग गए थे। पूरी रियासत पर कब्जा करने के बाद अपनी सरकार भी मौलाना ने चलाई थी। इसके बाद उन्हें अंग्रेजों ने पकड़ा और काला पानी की सजा सुनाई। अंडमान निकोबार की सेल्यूलर जेल में उन्हें बंद किया गया था लेकिन उनकी देशभक्ति देखकर फांसी नहीं दी गई थी। देश के लिए शहीद हुए इस वीर सपूत को कौशाम्बी भूल चुका है। यहां न तो उनकी कोई निशानी है न ही उन्हें कोई याद करने वाला, सिवाय महगांव इंटर कालेज के छात्रों के चायल तहसील के महगांव निवासी मौलाना लियाकत अली खान बचपन से ही उग्र स्वभाव के थे। देश गुलाम था, ब्रितानिया हुकूमत थी। बेटे के बागी तेवर से उनके पिता मेहर अली खान वाकिफ हो गए थे। इसलिए उन्होंने कभी उनको रोकने की कोशिश भी नहीं की थी। किशोरावस्था में ही अंग्रेजों का जुल्म देखकर मौलाना लियाकत अली खान ने बागी तेवर अपना लिया था। वह अपने साथियों की टोली के साथ आए दिन रणनीति बनाते थे। कम समय में ही वह बागी गुट के अगुवा भी बन गए थे। वर्ष 1857 में अंग्रेजों के खिलाफ पूरे देश में बगावत की लहर चली तो मौलाना लियाकत अली खान खुलकर सामने आ गए और कांतिकारियाें की अगुवाई करते हुए सदर तहसील इलाहाबाद पर धावा बोल दिया। कई अंग्रेजों को मारकर कब्जा कर लिया। खुसरोबाग पर भी कब्जा जमाया। मौलाना लियाकत अली के जिगर को देखकर अंग्रेजों को वहां से भागना पड़ा था।