maurya kalin sabhayata ki pramukh rachna kaun si hai
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कौटिल्य का अर्थशास्त्र, भद्रबाहु का कल्पसूत्र तथा बौद्ध ग्रन्थ मंजू श्री मूल कल्प मौर्यकालीन साहित्य की अनुपम कृतियाँ हैं। पतंजलि का महाभाष्य, वृहत्कथा का संस्कृत संस्करण, हरिषेण का जैन वृहत्कथा कोष तथा अभिनव गुप्त की नाट्य शास्त्र की रचनाएँ हैं।
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Mauryan dynasty ( मौर्य वंश )
HomeINDIAN HISTORYAncient History प्राचीन इतिहासMauryan dynasty ( मौर्य वंश )
Lokesh Kumar Swami
मौर्य वंश ( Mauryan dynasty 322-185 ईसा पूर्व )
मगध साम्राज्य के पश्चात मौर्य काल का प्रादुर्भाव हुआ मगध काल का अंतिम शासक धनानंद था यह सिकंदर महान का समकालीन था सिकंदर के जाने के पश्चात मगध में अशांति फैल गई फलस्वरूप चंद्रगुप्त मौर्य ने चाणक्य (विष्णुगुप्त )की सहायता से मगध सत्ता पर अधिकार कर लिया और मौर्य साम्राज्य की स्थापना की
चंद्रगुप्त मौर्य ने धीरे-धीरे चाणक्य की सहायता से संपूर्ण भारत को राजनीतिक एकता के सूत्र में पिरोया मौर्य साम्राज्य भारत का प्रथम व्यापक तथा भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे विशाल साम्राज्य था मौर्य साम्राज्य हिंदुकुश पर्वत से कावेरी नदी तक फैला था मौर्य काल में सर्वप्रथम सुदृढ़ प्रशासनिक व्यवस्था की स्थापना की गई जिसे सम्राट अशोक ने “जियो और जीने दो” के सिद्धांत पर आगे बढ़ाया
पूर्व काल के बौद्ध लेखक भी मौर्यों को क्षत्रिय जाति के सदस्य समझते थे और उनका उल्लेख पिप्पलिवन के छोटे गणतंत्र की शासक -जाति के रूप में करते हैं, जो शायद नेपाल की तराई में रूम्मिनदेई और गोरखपुर जिले के कसिया के बीच में बुद्ध के समय निवास करते थे ।
चन्द्रगुप्त के लिए बृषल उपनाम विशाखदत्त के मुद्राराक्षस नामक संस्कृत नाटक में लिखा गया है, जो सदा शूद्रों के लिए प्रयोग नही किया गया था ।यह क्षत्रिय व अन्य लोगों के लिए भी कहा गया है जो कि ब्राह्मण धर्मग्रंथों के कथित नियमों का पालन नहीं करते थे ।
मौर्य प्रशासन केंद्रीय राजतंत्रात्मक प्रशासन था जिसने पहली बार भारत को राजनीतिक एकता के सूत्र में बांधा। अर्थशास्त्र में राजा को परामर्श दिया गया है कि वह संपूर्ण शक्ति को अपने हाथों में ग्रहण करें। प्राचीन भारत में सबसे विस्तृत नौकरशाही मौर्य काल में थी अर्थव्यवस्था पर राजकीय नियंत्रण सर्वाधिक था।
” प्रजा के सुख में राजा का सुख है और प्रजा की भलाई में उस की भलाई राजा को जो अच्छा लगे वह हितकर नहीं है वरन हितकर वह है जो प्रजा को अच्छा लगे” -अर्थशास्त्र
कोटिल्य ने राज्य के सप्तांग बताए हैं।
1 राजा
2 अमात्य
3 राष्ट्र
4 दुर्ग
5 बल (सेना)
6 कोष
7 मित्र