Hindi, asked by paramjeetkaurmini201, 2 months ago

मय यिशापयामि
मनात टिर याहीरा प्रर्थप ठोरगी​

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Answered by bablimodi1985
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Answer:

जागो हिंदुस्तानी

यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।

अभ्युत्थानधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।।

परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।

धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे।।

’हे भरतवंशी अर्जुन ! जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब ही मैं अपने साकार रूप से लोगों के सम्मुख प्रकट होता हूँ। साधुजनों (भक्तों) की रक्षा करने के लिए, पापकर्म करने वालों का विनाश करने के लिए और धर्म की भली भाँति स्थापना करने के लिए मैं युग-युग में प्रकट हुआ करता हूँ।’

समाज में जब शोषक लोग बढ गये, दीन-दुःखियों को सतानेवाले तथा चाणूर और मुष्टिक जैसे पहलवानों व दुर्जनों का पोषण करनेवाले क्रूर राजा बढ गये, समाज ‘त्राहिमाम्‘ पुकार उठा, सर्वत्र भय व आशंका का घोर अंधकार छा गया, तब कृष्णावतार हुआ ।

भक्त लोग ‘श्रीकृष्ण कब हुए’ इस बात पर ध्यान नहीं देते बल्कि ‘उन्होंने क्या कहा’ इस बात पर ध्यान देते हैं, उनकी लीलाओं पर ध्यान देते हैं। भक्तों के लिए श्रीकृष्ण प्रेमस्वरूप हैं और ज्ञानियों को श्रीकृष्ण का उपदेश प्यारा लगता है फिर भी सामान्य रूप से यही माना जाता है कि आज से 5227 वर्ष पूर्व, द्वापर के 863875 वर्ष बीतने पर भाद्रपद मास में, कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में, बुधवार के दिन श्रीकृष्ण का जन्म हुआ।

वसुदेव-देवकी के यहाँ श्रीकृष्ण का जन्म हुआ तभी से भगवान श्रीकृष्ण हैं, ऐसी बात नहीं है। ऋगवेद में श्रीकृष्ण का बयान आता है, सामवेद के छान्दोग्योपनिषद में श्रीकृष्ण का बयान मिलता है। योगवाशिष्ठ महारामायण में कागभुशुण्ड एवं वशिष्ठजी के संवाद से पता चलता है कि श्रीकृष्ण आठ बार आये, आठ बार श्रीकृष्ण का रूप उस सच्चिदानंद परमात्मा ने लिया।

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