meaning of sentence - "jeevan ke laghudeep ko anant ki dhaara mein baha dena"
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कोई भी मानव अकेले स्वयं की भलाई नहीं कर सकता। उसके अकेले के प्रयत्न उसके काम नहीं आने वाले , उसको इसके लिए दूसरे का साथ अवश्य चाहिए। यदि हम अकेले ही सब कर पाते , तो आज कोई भी मनुष्य इस संसार में दु : खी नहीं रहता।जीवन सुख-दुखों के ताने-बाने से बनता है। जीवन में सुख-दुख धूप-छांव की तरह आते जाते हैं। ये सुख-दुख मनुष्य को संघर्षों से लड़ने की प्रेरणा देते हैं। मनुष्य के जीवन में संघर्ष परम आवश्यक है। एक मनुष्य तभी मनुष्य कहलाता है, जब वह संघर्षों से विजय पा लेता है। इस संसार में ऐसा कोई भी मनुष्य नहीं है जिसने संघर्ष नहीं किया हो। यह अवश्य है किसी के जीवन में कम और किसी के जीवन में संघर्ष ज्यादा होते हैं परन्तु होते अवश्य है। संघर्ष भी जीवन में विभिन्न तरह के होते हैं परन्तु होते अवश्य हैं। एक मनुष्य संघर्षों से लड़कर ही सोने के समान चमक उठता है। उसका व्यक्तित्व भी संघर्षों के कारण ही निखरता है। जिसे जीवन सब कुछ बिना परिश्रम किए मिल जाए, उसे जीवन का सच्चा अर्थ ज्ञात नहीं हो पाता।
हम सब धनवान , वर्चस्वशाली होने की कामना करते हैं , परंतु यह सब अकेले संभव नहीं है। बिना दूसरों की सहायता व सहयोग के कोई व्यक्ति अपने को औसत स्तर से ऊपर नहीं उठा सकता। अगर हम स्वयं के लिए ही सोचकर कोई आविष्कार करें , तो वह अविष्कार व्यर्थ है। अगर कोई भी आविष्कारकर्ता अपने बारे में ही सोचता , तो आज हम इतनी तरक्की नहीं कर पाते। यही भावना हम प्रकृति के कण - कण में देख सकते हैं - सूर्य , चन्द्र , वायु , पेड़ - पौधे , नदी , बादल और हवा बिना स्वार्थ के संसार की सेवा में लगे हुए हैं।