meera ki kavita sahajta aur samparn ki kavita hai iss kadhan ko sanshep mai samjhaiye
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मीरा की कविता सहजता और समपर्ण की कविता है इस कथन इस प्रकार है:
मीरा की कविता सहजता और समर्पण की कविता है। यह उनके काव्य से स्पष्ट दिखाई देता है। मीराबाई के काव्य की मुख्य विशेषता प्रेम की अनुभूति रही है। उन्होंने अपने समकालीन भक्तिकाल के कवियों में प्रेम का सबसे अधिक सहज, उत्कट और विद्रोही स्वरूप प्रस्तुत किया है। उन्होंने प्रेम की अभिव्यक्ति करने के लिए किसी तरह के माध्यमिक पात्र का सहारा नही लिया है। उन्होंने सीधे तरह से अपने काव्य के माध्यम से प्रेम को अभिव्यक्त किया है। जिस तरह कबीर ने रूपक का सहारा लिया, जायसी ने लोक कथाओं का तथा सूर ने गोपियों आदि का सहारा लेकर प्रेम को अभिव्यक्त किया है, वैसा मीराबाई ने नही किया बल्कि मीराबाई ने प्रेम की अभिव्यक्ति के लिए सहज और प्रत्यक्ष निवेदन किया है।
मीराबाई प्रेम की कवियत्री रही हैं, उनके तत्कालीन मध्ययुगीन समाज में जहाँ उस समय स्त्रियों को घर की चौखट से बाहर नहीं निकलने दिया जाता था और प्रेम करना तो एक तरह का अभिशाप समझा जाता था। ऐसे हालातों में उन्होंने समाज की संकीर्ण मानसिकता से विद्रोह करके विकट परिस्थितियों में घर से बाहर निकल कर कृष्ण के प्रति अपने प्रेम की अभिव्यक्ति का जो सरल और सहज रूप से प्रचार-प्रसार किया, वह उनके विद्रोही स्वरूप को भी दर्शाता है।
उनके काव्य में किसी तरह की बनावट या कल्पना न होकर कृष्ण के प्रति सहज प्रेम की समर्पित भावना मिलती है।