Meera ne apni kin echhao ko 3 Labh bataya hai
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: ध्यान और वन्दना
जेहि ‘रहीम’ मन आपनो कीन्हो चारु चकोर।
निसि-वासर लाग्यो रहे, कृष्ण चन्द्र की ओर॥1॥
शब्दार्थ / अर्थ : जिस किसी ने अपने मन को सुन्दर चकोर बना लिया, वह नित्य निरन्तर, रात और दिन, श्रीकृष्णरूपी चन्द्र की ओर टकटकी लगाकर देखता रहता है। (सन्दर्भ-चन्द्र का उदय रात को होता है, पर यहाँ वासर अर्थात दिन भी आया है, अत: वासर का आशय है नित्य निरन्तर से।)
‘रहिमन’ कोऊ का करै, ज्वारी,चोर,लबार।
जो पत-राखनहार है, माखन-चाखनहार॥2॥
शब्दार्थ / अर्थ : जिसकी लाज रखनेवाले माखन के चाखनहार अर्थात रसास्वादन लेनेवाले स्वयं श्रीकृष्ण हैं,उसका कौन क्या बिगाड़ सकता है? न तो कोई जुआरी उसे हरा सकता है, न कोई चोर उसकी किसी वस्तु को चुरा सकता है और न कोई लफंगा उसके साथ असभ्यता का व्यवहार कर सकता है। (सन्दर्भ-जुआरी का आशय है यहां शकुनि से, जिसने युधिष्ठर को धूर्ततापूर्वक जुए में बुरी तरह हरा दिया था।
ब्रह्मा द्वारा जब ग्वाल-बालों की गांए चुरा ली गयीं, तब श्रीकृष्ण ने उनकी रक्षा की थी। इसी प्रकार दुष्ट दु:शासन द्वारा साड़ी खींचने पर आर्त द्रौपदी की लाज श्रीकृष्ण ने बचाई थी।)