Biology, asked by vinayraj7292, 7 months ago

Mendal dyara matar k paudhe chunne k labh btaye

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Answered by at176396
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उन्होंने देखा की मटर के पौधे की एक ख़ास विशेषता है- उसका फूल या तो सफ़ेद होता है या जामुनी. अब जानने वाली बात ये थी कि ऐसा क्यों है- और एक पौधे में क्या निर्धारित करता है कि उसका फूल सफ़ेद होगा या जामुनी. इस सवाल के हल के लिए मेंडल ने कुछ ऐसा किया.

मेंडल का काम समझने से पहले हमें ये जानना होगा कि पौधों के फूलों में नर और मादा दो भाग होते हैं. जब नर और मादा का मिलन होता है तो नए पौधे के बीज तैयार होते हैं. नया पौधा बनने के लिए नर और मादा एक पौधे से भी हो सकते हैं या अलग-अलग पौधों से भी हो सकते हैं.

काम की शुरुआत करने के लिए, मेंडल ने दो ऐसे पौधे लिए, जिनमें से एक पर हमेशा सफ़ेद फूल खिलते थे और दूसरे पर हमेशा जामुनी. जब उन्होंने सफ़ेद फूल वाले पौधे का संगमन (मिलन) सफ़ेद फूल वाले पौधे से कराया तो देखा कि जो नया पौधा होता उसमें हमेशा सफ़ेद फूल खिलते.

इसी तरह, जब जामुनी फूल वाले पौधे को जामुनी फूल के पौधे से संगमन कराया तो नए पौधे पर हमेशा जामुनी फूल लगते. इसमें शायद कोई हैरान होने वाली बात भी नहीं थी. जब जन्म देने वाले दोनों पौधे सफ़ेद रंग के थे तो नए पौधे के फूल भी सफ़ेद ही आए (और ऐसा ही जामुनी फूल वाले पौधों के साथ हुआ). इन शुरुआती पौधों को मेंडल ने पीढ़ी नंबर- 1 कहा.

पर मज़ेदार बात यह रही कि जब उन्होंने सफ़ेद फूलों वाले एक पौधे का संगमन जामुनी फूल वाले पौधे के साथ कराया को पाया कि नए पौधे के फूल जामुनी होते हैं.

इससे भी बढ़कर ये बात थी कि यह प्रयोग आप जितनी भी बार कर लीजिए नए पौधे के फूल हमेशा जामुनी ही रहेंगे. मेंडल इससे हैरान थे कि सफ़ेद फूल बनाने की युक्ति कहां गुम हो गई, जिससे पीढ़ी नंबर- 2 के सारे पौधे जामुनी फूल वाले थे.

अब उन्होंने ऐसा किया जिससे ये कहानी और दिलचस्प हो जाती है. अब मेंडल ने दूसरी पीढ़ी के दो पौधे लिए और उनके संगमन से एक नया पौधा बनाया (यह पौधा उन्होंने पीढ़ी नंबर- 3 कहा).

मज़ेदार बात यह हुई कि इस तीसरी पीढ़ी में कभी नए पौधे के फूलों का रंग सफ़ेद होता तो कभी जामुनी. और निश्चित रूप से कहें हो उन्होंने देखा कि अगर यह प्रयोग सैकड़ों बार दोहराया जाए (जैसा कि मेंडल ने किया) तो यह पाया जाएगा कि तीसरी पीढ़ी के जो पौधे हैं, उनमे से 75 प्रतिशत जामुनी फूल वाले हैं और बाकी 25 प्रतिशत सफ़ेद फूल वाले हैं.

इस अवलोकन से मेंडल के मन मे दो सवाल उठे…

पहला, ऐसा क्या हो गया जिससे सफ़ेद रंग पीढ़ी नंबर- 2 में लुप्त हो गया था और फिर पीढ़ी नंबर- 3 में वापस आ गया?

और दूसरा इन पौधों मे ऐसा क्या चल रहा था जिससे कि यह 75:25 प्रतिशत के आंकड़े का पालन कर रहे थे?

मेंडल की खोज की महानता यही है कि वह सिर्फ़ इन नतीजों पर ही नहीं रुके, उन्होंने इसका राज़ खोला. हमें आज यह पता है कि मेंडल एकदम सही दिशा में सोच रहे थे पर आज 21वीं सदी में उनके काम के बारे में बात करते हुए हमें यह ध्यान मे रखना चाहिए कि में ‘डीएनए’ जैसी किसी चीज़ का कोई ज्ञान नहीं था.

खैर, मेंडल ने फूलों के रहस्य को कुछ इस तरह समझाया. मेंडल ने कहा कि एक नवजात पौधे के फूलों का रंग इस बात से निर्धारित होता है कि उसके जन्म के लिए जिन दो पौधों का संगमन हुआ, उनके फूलों का क्या रंग था. वो दोनों युवा पौधे के फूलों का रंग निर्धारित करने के लिए एक तत्व युवा पौधे में छोड़ेंगे और उसके परिणामस्वरूप पौधे के फूलों का रंग निर्धारित होगा.

उन्होंने कहा कि उनके प्रयोगों से ऐसा लगता है जैसे फूलों का रंग सफ़ेद भी हो सकता है और जामुनी भी. जो सफ़ेद फूल वाले पौधे थे (पीढ़ी नंबर 1 में), उनमें कुछ ऐसा तत्व था जो वो अपने शिशु पौधों को देते थे, जिससे उसके फूलों का रंग सफ़ेद हो. इस कारण, दो सफ़ेद फूलों वाले पौधों के संगमन से बनने वाले पीढ़ी नंबर 1 के पौधे हमेशा सफ़ेद फूल ही देंगे- क्योंकि ऐसे पौधे को सिर्फ सफ़ेद रंग देने वाला तत्व ही मिल रहा है.

पर, जब एक सफ़ेद और एक जामुनी रंग के फूल वाले पौधे के संगमन से नया पौधा मिलता है तो इस पौधे को सफ़ेद रंग देने वाला और जामुनी रंग देने वाला, दोनों तत्व मिलते हैं.

ऐसे में, मेंडल ने कहा, कि ऐसा प्रतीत होता है जैसे जामुनी तत्व, सफ़ेद तत्व पर भारी पड़ जाता है. परिणामस्वरूप, पीढ़ी नंबर 2 में सारे पौधे जामुनी रंग के फूल देते हैं.

अब पीढ़ी नंबर 2 में सब पौधे जामुनी फूल वाले तो हैं, पर हर पौधे के पास एक सफ़ेद तत्व भी है और एक जामुनी तत्व भी है. अब जब ऐसे दो पौधों का संगमन होगा, तब दोनों पौधे, निरुद्देश्य तरीके से अपना कोई एक तत्व शिशु पौधे को देंगे.

मेंडल ने समझाया कि ऐसी स्थिति में पीढ़ी नंबर 3 में 25 प्रतिशत पौधे होंगे जिन्हें दोनों पौधों से सफ़ेद तत्व मिलेगा (यानी सफ़ेद फूल); 50 प्रतिशत होंगे जिन्हें एक सफ़ेद तत्व और एक जामुनी तत्व मिलेगा (यानी जामुनी फूल); और 25 प्रतिशत ऐसे होंगे जिनमें दोनों जामुनी तत्व मिलेंगे (यानी जमुनी फूल). यह एकदम वही आंकड़ा है जो मेंडल ने तीसरी पीढ़ी में देखा.

तो, मेंडल के नतीजों ने हमें बताया कि एक नवजात में कोई भी विशेषता इससे निर्धारित होती है कि उसे अपने मां-बाप से कौन से तत्व मिले हैं. वो तत्व अलग भी हो सकते हैं, या एक जैसे भी. नवजात की विशेषता दोनों तत्वों के गणित से निकलेगी. अक्सर एक तत्व, दूसरे पर भारी पड़ जाता है (जैसे जामुनी रंग सफ़ेद रंग वाले तत्व पर).

एक नवजात शिशु के पैदा होने पर हम अकसर ऐसा बोलते हैं, ‘इसकी आंखें मां पर गई हैं.’, ‘नाक बाप जैसा है’ इत्यादि. पर ऐसा कैसे होता है? जो मेंडल ने हमें मटर के पौधे के माध्यम से समझाया, ठीक वही हमारे और सभी जानवरों के साथ भी होता है.

जन्म के दौरान मां और पिता दोनों, अपनी-अपनी ओर से तत्व (डीएनए) नवजात को देते हैं. इन दोनों तत्वों में मेंडल के गणित के तहत निर्धारित होता है कि नवजात शिशु कैसा दिखेगा. क्योंकि मेंडल का गणित और उनकी खोज सिर्फ मटर ही नहीं, बल्कि प्रकृति के हर एक जानवर पर लागू होती है- इसलिए अनुसंधान के इस क्षेत्र को मेंडलियन आनुवंशिकी कहा जाता है.

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