Mera class 10 mae lakshya ....
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Mere Jeevan ka Lakshya
मनुष्य एक चिन्तनशील प्राणी है। वह सदा जीवन में आगे ही आगे बढ़ना चाहता है। चाहे एक सांसारिक मनुष्य हो या संयासी, सभी अपने कर्मों द्वारा जीवन को सार्थक बनाना चाहते हैं। इसी कारण मनुष्य दृढ़निश्चय, लगन व साहस से सदैव अपने कार्य में प्रयासरत रहता है। किन्तु मनुष्य का प्रयास किस दिशा में हो, इसका निर्धारण लक्ष्य करता है। हरिवंशराय बच्चन के अनुसार—
‘पूर्व चलने के बटोही,
बाट की पहचान कर ले।
मनुष्य का जीवन एक ऐसी धारा है जिसे लक्ष्य निर्धारण द्वारा उचित दिशा में मोड़ा जा सकता है। लक्ष्यहीन जीवन पशु-तुल्य है। लक्ष्यरहित मनुष्य का जीवन एक चपरहित नौका के समान भवसागर में तूफानों के थपेड़ों से चूर-चूर हो जाता है। ऐसा मनुष्य अपना सम्पूर्ण जीवन केवल खाने-पीने और सोने में ही व्यर्थ गंवा देता है और अंत समय पश्चात्ताप करता है कि अनमोल हीरे के तुल्य मानव जीवन ‘बिना किसी उपलब्धि के ही बीत गया। ऐसे व्यक्ति विद्या, तप, दान, धर्म आदि के बिना पृवी पर भार स्वरूप अपना जीवन-निर्वाह करते हैं। ऐसे ही मनुष्यों के विषय में संस्कृत आचार्य लिखते हैं–
‘येषां न विद्या न तपो न दानं,
न ज्ञानं न शीलं न गुणो न धर्मः।
ते मृत्युलोकें भुवि भारभूताः
मनुष्यरूपेण मृगाश्चरन्ति ।।
अतः मन को नियंत्रण में रखकर, दूरदर्शिता से एक लक्ष्य का निधारण करना चाहिए। लक्ष्य-निर्धारण के
महत्व पर बल देते हुए कयरीदास जी लिखते हैं–
‘मन सागर मनसा लहरि, बड़े बड़े अनेक।
कह कबीर ते ‘वाचिहैं, जिन्हें हृदय विवेक।।’
जिस प्रकार कोई व्यक्ति स्टेशन पर गाड़ी से उतरे और उसे यह ज्ञात हो कि उसे किस मुहल्ले और किस मकान पर पहुंचना है तो वह अपना समय गंवाए। बिना तुरन्त वहाँ पहुंच जाएगा। इसी प्रकार लक्ष्य का चुनाव कर लेने से भी मनुष्य एक निश्चित मार्ग पर चलकर अभीष्ट सिद्धि पा सकेगा। अतः लक्ष्य का चुनाव अत्यावश्यक है।
लक्ष्य का चुनाव करते समय अत्यन्त सावधानी रखनी पड़ती है। इसके लिए मनुष्य को अपनी क्षमता, आर्थिक परिस्थिति, रुचि, संकल्प, समाज द्वारा मान्यता आदि तथ्यों को ध्यान में रखना पड़ता है। कबीर ने कहा है- “तेते पाँव पसारिये, जैती लांबी सौर।’ अत: लक्ष्य का चुनाव करते समय व्यक्ति को ध्यान में रखना । चाहिए कि ऐसा लक्ष्य भी न चुना जाए कि व्यक्ति को उसके लिए बिल्कुल श्रम हीं न करना पड़े। इससे वह अकर्मण्य बन जाए। ऐसा लक्ष्य भी न चुना जाए कि उस तक न पहुंच पाने के कारण व्यक्ति में हीन-भावना घर कर जाए। वास्तव में लक्ष्य ऐसा हो, जो अपने जीवन को सुख-शांति देने के साथ-साथ समाज और राष्ट्र! की उन्नति में भी सहायक हो।
वैसे तो जीवन के लक्ष्य कई हो सकते हैं। कोई डॉक्टर बनना चाहता है, कोई इन्जीनियर, कोई सरकारी कर्मचारी बनने की कामना करता है, तो कोई व्यवसायी बनने की। मैं भी जीवन के एक ऐसे चौराहे पर खड़ा हूँ, जहाँ मुझे एक लक्ष्य निर्धारित करके एक निश्चित दिशा में आगे बढ़ जाना है। अतः मैंने काफी सोच विचारकर अध्यापक बनने का दृढ़ निश्चय किया है। अध्यापन-कार्य में मानसिक शांति भी है और राष्ट्र-सेवा की । इससे आत्मा की भूख शांत करने के लिए साहित्य का अध्ययन करने का सुअवसर भी मिलेगा और देश के भावी कर्णधारों के भविष्य निर्माण में मेरा सहयोग भी रहेगा। इसलिए मेरी तीव्र इच्छा है कि–
‘बनकर मैं आदर्श अध्यापक,
शिक्षित कर दें सारा देश।
पूरे देश में नाम हो मेरा,
सभी मनुष्य के लिए जीवन में लक्ष्य का होना अनिवार्य है। लक्ष्यविहीन मनुष्य पशुओं के समान ही विचरण करता है। वह परिश्रम तो करता है परंतु उसका परिश्रम उसे किसी ऊँचाई की ओर नहीं ले जाता है क्योंकि उसका परिश्रम उद्देश्य रहित होता हैं। दूसरी ओर जीवन में एक निश्चित लक्ष्य रखने वाला मनुष्य अपनी समस्त ऊर्जा को लक्ष्य के प्रति आसानी से केंद्रित कर देता है जिससे वह दिन प्रतिदिन प्रगति की ओर अग्रसर होता है।
मनुष्य को अपने लक्ष्य का निर्धारण बहुत ही सावधानीपूर्वक करना चाहिएं। लक्ष्य के निर्धारण में व्यक्ति की अपनी रूचि होना आवश्यक है। आधुनिक जगत की यही विड़बना है कि अधिकांश लोग तो करते हैं परंतु उस कार्य में उनकी रूचि नहीं होती हैं। अधिकतर लोग ऐसे कार्य में व्यस्त हैं जिसके लिए वे पूर्ण रूप से योग्य नहीं होते हैं फिर भी संसाधनों आदि के अभाव में विवशतापूर्वक वे कार्य करते चले जाते हैं। निःसंदेह अनिच्छा से किए गए कार्य से वे अपनी शक्ति और सामथ्र्य का पूर्ण रूप से सदुपयोग नहीं कर पाते हैं जिससे जीवन पर्यंत वे सृजन से वंचित रह जाते हैं। अतः किसी भी कार्य को करने हेतु उस कार्य के प्रति मनुष्य की अभिरूचि नितांत आवश्यक है।
हमारे देश में प्रायः लोग वंशानुगत कार्य को बड़ी ही सहजतापूर्वक अपना लेते हैं। लोग बाल्यावस्था से ही मानसिक रूप से उसे इस प्रकार तैयार करते हैं कि वह बडे़ होकर स्वयं ही अपने पूर्वजों के बताए मार्ग पर चल पड़ता है। हमारे देश की सामाजिक व्यवस्था भी बहुत हद तक इसके लिए उत्तरदायी है। इन परिस्थितियों में वह चाहकर भी किसी नए कार्य को नहीं अपना पाता है। वह बड़ों की इच्छा को अपनी इच्छा मानने लगता है। हालाँकि परंपरागत कार्यों को भी यदि आधुनिक वैज्ञानिक उपलब्धियों के साथ जोड़ दिया जाए तो उनमें नवीनता आ जाती है। कृषि कार्य हों या पशुपालन , आधुनिक तरीके अपनाकर लोग इन क्षेत्रों में भी नए आयाम स्थापित कर सकते हंै। विकसित देशों के लोग उन्नत कृषि विधियों को अपनाकर राष्ट्र के विकास में अतुलनीय योगदान करते हैं।❤❤❤❤❤❤❤ please sis mark me brilliant ❤❤❤