Hindi, asked by swapnil9322222590, 11 months ago

mera prakruti prem sumarry

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Answered by gjyoti827
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Explanation:

हरित पल्लवित नववृक्षों के दृश्य मनोहर

होते मुझको विश्व बीच हैं जैसे सुखकर

सुखकर वैसे अन्य दृश्य होते न कभी हैं

उनके आगे तुच्छ परम ने मुझे सभी हैं ।

छोटे, छोटे झरने जो बहते सुखदाई

जिनकी अद्भुत शोभा सुखमय होती भाई

पथरीले पर्वत विशाल वृक्षों से सज्जित

बड़े-बड़े बागों को जो करते हैं लज्जित।

लता विटप की ओट जहाँ गाते हैं द्विजगण

शुक, मैना हारील जहाँ करते हैं विचरण

ऐसे सुंदर दृश्य देख सुख होता जैसा

और वस्तुओं से न कभी होता सुख वैसा।

छोटे-छोटे ताल पद्म से पूरित सुंदर

बड़े-बड़े मैदान दूब छाई श्यामलतर

भाँति-भाँति की लता वल्लरी हैं जो सारी

ये सब मुझको सदा हृदय से लगती न्यारी।

इन्हें देखकर मन मेरा प्रसन्न होता है

सांसारिक दुःख ताप तभी छिन में खोता है

पर्वत के नीचे अथवा सरिता के तट पर

होता हूँ मैं सुखी बड़ा स्वच्छंद विचरकर।

नाले नदी समुद्र तथा बन बाग घनेरे

जग में नाना दृश्य प्रकृति ने चहुँदिशि घेरे

तरुओं पर बैठे ये द्विजगण चहक रहे हैं

खिले फूल सानंद हास मुख महक रहे हैं ।

वन में त्रिविध बयार सुगंधित फैल रही है

कुसुम व्याज से अहा चित्रमय हुई मही है

बौर अम्ब कदम्ब सरस सौरभ फैलाते

गुनगुन करते भ्रमर वृंद उन पर मंडराते ।

इन दृश्यों को देख हृदय मेरा भर जाता

बारबार अवलोकन कर भी नहीं अघाता

देखूँ नित नव विविध प्राकृतिक दृश्य गुणाकर

यही विनय मैं करता तुझसे हे करुणाकर ।

Answered by brain53
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