mera priya lekhakh essay in hindi
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हिंदी साहित्य के उद्भट विद्वान्, श्रेष्ठ निबंधकार, गंभीर लेखक तथा सुकवि, हिंदी में ‘वैज्ञानिक’ समीक्षा-पद्धति का प्रादुर्भाव कर आलोचना को समालोचना के रूप में परिवर्तित करनेवाले आलोचक प्रवर पं. रामचंद्र शुक्ल का जन्म बस्ती जिले के अगौना ग्राम में सन् १९४१ की आश्विन पूर्णिमा को हुआ था ।
उन्होंने संस्कृत की शिक्षा घर में तथा एफ.ए. तक की शिक्षा कॉलेज में प्राप्त की थी; किंतु स्वाध्याय द्वारा अनेक भाषाओं के ज्ञाता बने । प्रारंभ में उन्होंने मिशन स्कूल, मिर्जापुर में अध्यापन का कार्य किया । सन् १९५६ में ‘हिंदी शब्द सागर’ के सहायक संपादक नियुक्त हुए ।
लगभग उन्नीस वर्ष तक त्रैमासिक ‘नागरी प्रचारिणी पत्रिका’ का संपादन किया । हिंदू विश्वविद्यालय, काशी में हिंदी के अध्यापक तथा बाद में- आजीवन सन् १९९७ तक- विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग के गौरवपूर्ण अध्यक्ष पद पर आसीन रहे ।
आचार्य शुक्ल को ‘काव्य में रहस्यवाद’ निबंध पर हिंदुस्तानी एकेडमी द्वारा ५०० रुपए के पुरस्कार से सम्मानित किया गया था । ‘चिंतामणि’ निबंध-संग्रह पर हिंदी साहित्य सम्मेलन द्वारा १,२०० रुपए का ‘मंगलाप्रसाद पारितोषिक’ प्रदान किया गया था ।
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