mere soach Hindi essay
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मेरे पिता मेरे लिए आदर्श है। क्योंकि वे एक आदर्श पिता हैं। उनमें वे सारी योग्यताएं मौजूद हैं जो एक श्रेष्ठ पिता में होती हैं। वे मेरे लिए केवल एक पिता ही नहीं बल्कि मेरे सबसे अच्छे दोस्त भी हैं, जो समय-समय पर मुझे अच्छी और बुरी बातों का आभास कराकर आगाह करते हैं। पिताजी मुझे हार न मानने और हमेशा आगे बढ़ने की सीख देते हुए मेरा हौसला बढ़ाते हैं।पिता से अच्छा मार्गदर्शक कोई हो ही नहीं सकता। हर बच्चा अपने पिता से ही सारे गुण सीखता है जो उसे जीवन भर परिस्थितियों के अनुसार ढलने के काम आते हैं। उनके पास सदैव हमें देने के लिए ज्ञान का अमूल्य भंडार होता है, जो कभी खत्म नहीं होता। उनकी कुछ प्रमुख विशेषताएं उन्हें दुनिया में सबसे खास बनाती है
धीरज- पिताजी का सबसे महत्वपूर्ण गुण है, कि वे सदैव हर समय धीरज से काम लेते हैं और कभी खुद पर से आपा नहीं खोते। हर परिस्थिति में वे शांति से सोच समझ कर आगे बढ़ते हैं और गंभीर से गंभीर मामलों में भी धैर्य बनाए रखते हैं।
संयम - मैने हमेशा पिता से सीखा है कि चाहे कुछ भी हो जाए, हमें अपने आप पर से नियंत्रण कभी नहीं खोना चाहिए। पिताजी हमेशा संयमित व्यवहारकुशलता से हर कार्य को सफलता पूर्वक समाप्त करते हैं। वे कभी मुझ पर या मां पर बिना वजह छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा नहीं करते।
अनुशासन- पिताजी हमेशा हमें अनुशासन में रहना सिखाते हैं और वे खुद भी अनुशासित रहते हैं। सुबह से लेकर रात तक उनकी पूरी दिनचर्या अनुशासित होती है। वे सुबह समय पर उठकर दैनिक कार्यों से नि़वृत्त होकर ऑफिस जाते हैं और समय पर लौटते हैं। वे प्रतिदिन शाम को मुझे बगीचे में घुमाने भी लेकर जाते हैं। इसके बाद वे मुझे स्कूल के सारे विषयों का अध्ययन करवाते हैं।
end of the essay
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हमारे विचारों में सत्य को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। सत्य ही ईश्वर है। स्वार्थ, द्वेष, नफरत, दुश्मनी, अंहकार, क्रोध, ईष्र्या, बाहरी जगत की जरूरतों की अत्याधिक लालसा इत्यादि वाले विचारों से दूरी बनाने का प्रयास करना है।
हमें यह जान लेना है कि विचार मैं ही बनाता हूँ और मैं ही उन विचारों को समाप्त कर सकता हूँ। दूसरे क्या सोचते हैं इसकी चिन्ता मुझे नहीं करनी है। मुझे अपने पर ध्यान देना है। मेरी सोच / मेरे संस्कार / मेरी आदतें मेरे विचारों द्वारा निर्मित होते हैं। मैं ही इन्हें नियंत्रित कर सकता हूँ। मेरी आदतें/मेरे संस्कार ही मेरे व्यक्त्वि का आधार हैं।
मेरी सोच के द्वारा किए गए कार्य के फलस्वरूप मेरा भाग्य बनता है। मैं गलत सोच के कार्य करूंगा तो मेरा भाग्य भी अंधकारमय हो जाएगा। परनिंदा से बचना है। बहस से बचना है। बहस से अंहकार उत्पन्न होता है। बीती बातों को याद करना, अपने सुखे धावों को कुरेदने के समान है। हमारे विचार बाहरी जगत की सूचनाओं, परिथितियों एवं मान्यताओं पर केन्द्रित होते हैं। दूसरे क्या सोचते हैं इसकी चिंता मत करो मैं क्या सोचता हूँ वही महत्वपूर्ण है।
मन की खुशी क्या है। खुशी मेरे अन्दर है उसे मुझे किसी से लेने या खरीदने कहीं जाना नहीं पड़ता। हमारी कोई जरूरत पूरी होती है तब मन प्रसन्न हो जाता है। मन की खुशी कार्य की सम्पन्नता से भी होती है। हमारा मन हमेशा प्रसन्न जब ही रह सकता है जब हमारे विचार/हमारी सोच एक सही दिशा में ही कार्यवान्वित हो रहे हो।