' mere vidyalaya ki ghanti ' per anuched in hindi
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मैं एक घंटी हूँ। मैं विद्यालय में एक कमरे के सामने लटकी रहती हूँ। मेरे अनुसार ही किसी भी विद्यालय में काम किया जाता है। निर्धारित समय के अनुसार मुझे समय- समय पर बजाया जाता है। मुझे सुबह-सुबह इसलिए बजाया जाता है, ताकि मेरी आवाज़ सुनकर सभी विद्यार्थी प्रार्थना के लिए आ जाए। इसके बाद अलग-अलग पीरिएड के लिए मुझे बजाया जाता है। अंत में मुझे छुट्टी होने के संकेत के लिए बजाया जाता है। .........................
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Answer:
क्या कोई संगीत अन्तिम घंटी से मधुर हो सकता है ? सारा विद्यालय रोमांचित हो जाता है । ऐसा प्रतीत होता है कि कारागार के द्वार खुल गये हों एवं वहां के निवासी उसे जल्दी से जल्दी छोड़ कर भागना चाहते हैं । मध्यावकाश के बाद की कक्षायें उबाऊ होती हैं ।
अन्तिम कक्षा तक पहुँचते-पहुँचते तो अति हो जाती है । अध्यापक भी इस बात से परिचित हैं । वह भी विद्यार्थियों से छुटकारा पाना चाहते हैं । किन्तु हमारे लिये तो प्रत्येक क्षण सिर पर बोझ सा प्रतीत होता है । विद्यार्थी बार-बार घड़ी देखने लगते हैं । जब केवल पांच मिनट रह जाते हैं तो वह अपना बैग पैक करना प्रारम्भ कर देते हैं ।
वह ब्लैक-बोर्ड पर अध्यापक को पढ़ाते हुये देखते हैं पर उनके हाथ पैकिंग में लगे होते हैं । दिमाग काम करना बन्द कर देता है । वह रॉबोट् की तरह यन्त्रवत् काम करते हैं । अन्तिम घंटी की आवाज उन्हे नये उत्साह से भर देती है । उनकी आवाजें और चीखें गूँजने लगती हैं ।
बस के यात्रियों की तरह हर कोई पहले निकलना चाहता है । अध्यापक उन्हें सीडियों पर नियन्त्रित करने का प्रयत्न करते हैं । वह उन्हें पंक्तिबद्ध होकर चलने के लिये कहते हैं । विद्यार्थी कहना मान लेते हैं किन्तु झट से फिर पंक्ति तोड़ देते हैं ।
जैसे ही वह विद्यालय के प्रागण में पहुँचते हैं उनकी बातचीत और तेज हो जाती है । ऐसा लगता है वह सदा के लिये विद्यालय छोड़ कर चले जायेंगे । पांच मिनट के अन्दर पूरा विद्यालय खाली हो जाता है एवं विद्यालय हो जाता है निपट सुनसान ।
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