Meri abhilasha nibandh
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मेरी अभिलाषा है कि मैं एक सफल अध्यापक बनूं । मुझे बचपन से ही पढ़ने का शौक है । मैं परीक्षा के दिनों में अपने छोटे भाई-बहिनों को पढ़ाता रहा हूँ और अपने साथियों की कठिनाईयां दूर करने में उनको सहयोग देता हूँ । अध्यापक बनने का मेरा संकल्प दृढ़ है । इस का मुख्य कारण यह है कि अध्यापक राष्ट्र निर्माण का उत्तरदायित्व लिए हुए है ।
अपने परिश्रम और लग्न से अध्यापक प्रतिवर्ष सैकड़ों बालकों का जीवन निर्माण करता है । उनके जीवन को जीने योग्य बनाता है । वस्तुत: यह पुण्य का कार्य है । अध्यापक के पास पर्याप्त समय होता है । ग्रीष्मावकाश, शरदावकाश और क्रिसमस के अवसर पर उसे पर्याप्त छुट्टियाँ मिलती हैं । इनमें वह समाज सेवा कर सकता है ।
अध्यापक बनने के लिए मुझे कठिन परिश्रम करना पड़ेगा । बी॰ एल॰ एम॰ ए॰ करने के साथ-साथ मुझे शिक्षणकला में भी उपाधि ग्रहण करनी होगी । इसके पश्चात् चयन प्रक्रिया से गुजरना पड़ेगा । मैंने कठोर परिश्रम करने का संकल्प कर लिया है ।
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मानव-जीवन का परम लक्ष्य है दूसरों को आनन्द प्रदान करना, विश्व का कल्याण करना तथा अपने हृदय सागर के अनमोल से अनमोल रत्न को दूसरों के हित के लिए लुटा देना। इसी बात को ध्यान में रखते हुए मैंने अपने जीवन का लक्ष्य निर्धारित किया है कि मैं बड़ा होकर एक आदर्श अध्यापक बनूँ तथा समाज व देश का हित करूँ।
शिक्षक होना सचमुच बहुत बड़ी बात हुआ करती है। वह अपनी सुसाधित सशिक्षा के प्रकाश से अज्ञान के अन्धेरे को दूर कर आदमी को ज्ञान का प्रकाश प्रदान किया करता है। अध्यापक (शिक्षक) का पद वह गौरवपूर्ण पद है जिसको प्राप्त करना बड़ा कठिन है। इसको पाने के लिए मुझे कठिन परिश्रम करना होगा। इसके लिए मुझे सर्वप्रथम एक आदर्श विद्यार्थी बनना होगा। बड़े लगन तथा परिश्रम के साथ विद्याध्ययन करना होगा। मुझे किसी विषय में पारंगत होना होगा, उसके बिना मैं अपने कार्य के साथ न्याय नहीं कर सकता। मुझे एक आदर्श अध्यापक बनने के लिए तपस्वी के समान साधक, सैनिक के समान अनुशासन-प्रिय एवं पृथ्वी के समान धैर्यवान व सहनशील बनना होगा। ऐसा बनना ही मेरे जीवन की अभिलाषा भी है और लक्ष्य भी। इसके लिए मैं निरन्तर प्रयत्नशील हूँ।
अध्यापन कार्य एक पवित्र कार्य है। अध्यापक राष्ट्र-निर्माता है। वह अपनी सुकुमार मति से छात्रों का शिक्षा के द्वारा नवनिर्माण करता है, उन्हें एक नए सांचे में ढालता है। यद्यपि अध्यापक की दशा बहुत दयनीय है फिर भी वह इसकी परवाह किए बिना ही देश और समाज की सच्ची सेवा करता है। वह देश की निरक्षरता को दूर करता है। वह राष्ट्र के बच्चों को सुयोग्य नागरिक बनाता है। वह विद्यार्थियों के चरित्र का निर्माण करता है। इन गुणों को ध्यान में रखकर मैंने विचार किया
है कि मैं एक अध्यापक बनू तथा अपने देश व समाज की सेवा करूँ।
अध्यापक बन कर लोगों को हर प्रकार से योग्य, समझदार तथा कार्य-निपुण बनाने का प्रयत्न करूंगा। उनको जीवन में जीने की नई दृष्टि और उत्साह दूंगा। मेरा विश्वास है कि विद्या धन ही सर्वोत्तम धन है और विद्यादान ही सबसे बड़ा दान है। मेरा उद्देश्य (ध्येय) तभी सफल होगा जब मैं अपने कार्य में सफल होऊँगा। मुझे अति प्रसन्नता तो तब होगी जब मेरे पढ़ाए हुए विद्यार्थी कुशल डॉक्टर, सफल इंजीनियर, उच्चाधिकारी और देश के आदर्श नेता बन पाएँगे।