Hindi, asked by suhagnijaiswal, 9 months ago

Meri Pehli real Rail yatra par anuched​

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Answered by Anonymous
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                       मेरी प्रथम रेल यात्रा

मनुष्य की जिज्ञासा कभी भी एक ही स्थान पर और एक ही उद्देश्य तक सीमित नहीं रहती है। किसी भी यात्रा का अपना अलग सुख होता है। यात्रा करना बहुत लोगों को पसंद होता है। स्थल यातायात में रेलगाड़ी का बहुत महत्व होता है। हमारे भारत में सारे देशों को रेल लाईनों से जोड़ा गया है।

मैंने बस से तो कई बार यात्रा की है लेकिन रेलगाड़ी से एक बार भी यात्रा नहीं की है। लोगों से अधिक बच्चे अपनी पहली यात्रा पर उत्सुक होते हैं। लोगों को दूर की यात्रा में बस की जगह रेल अधिक आनंद देती है। बस में सोने, इधर-उधर फिरने की सुविधा नहीं होती है लेकिन रेल में सभी सुविधाएँ होती हैं।

रेलवे प्लेटफार्म से हम खाने-पीने और रोमांचक वस्तुएँ खरीद सकते हैं। प्लेटफार्म पर हम मेले जैसा अनुभव करते हैं। मेरी पहली यात्रा 2006 में पूरी हुई थी। उस समय मैं चौथी कक्षा में पढ़ता था। मैं अपने परिवार के साथ ग्रीष्मकाल की छुट्टियों में शिमला गया था।

शिमला का कार्यक्रम : मेरे पिता जी एक सरकारी पुलिस अधिकारी हैं। उन्हें अपने बड़े अधिकारीयों द्वारा एक माह का अवकाश मिलता है। ग्रीष्म ऋतू के समय में मेरे पिता जी ने शिमला जाने का कार्यक्रम बनाया। इस सुनहरे अवसर पर हम सभी ने रेलगाड़ी द्वारा शिमला जाने की योजना बनाई थी।

मैं बहुत आनंदित था कि मैं अपनी पहली यात्रा को पूर्ण करने जा रहा था। शिमला जाने के लिए हम सभी लोगों में तैयारी के लिए भाग-दौड़ शुरू हो गयी थी। पिताजी ने हमें बताया कि हमारे पास कम-से-कम दो-दो आधी बाजुओं के स्वेटर और दो-दो पुलोवर वश्य होने चाहिए। हमारी माता जी ने हमारे पहनने और खाने के लिए बहुत सा सामान रख लिया था।

हमारी पहली यात्रा की शुरुआत स्टेशन से हुई थी। हम लोगों ने अपनी टिकट स्टेशन से खरीदी। स्टेशन से हम जो चाहें खरीद सकते हैं। उस दिन हम लोग बहुत जल्दी स्टेशन पर पहुंच गये थे। हमारी गाड़ी को प्लेटफार्म न. 12 पर आना था इसी वजह से हम सभी लोग 12 प्लेटफार्म पर जाकर बैठ गये।

हम लोगों ने 2 बजे तक प्रतीक्षा करने के लिए समाचार पत्र और पत्रिकाओं का अध्धयन भी किया। मैंने रेलगाड़ी में पढने के लिए एक पत्रिका खरीदी वह बहुत ही ज्ञानवर्धक पत्रिका थी जिसमें सभी जानकारी की बातें छपी हुईं थीं। 2 बजे रेलगाड़ी झुक-झुक करती हुई अपने प्लेटफार्म पर पहुंची।

शिमला के लिए प्रस्थान : हम सब का पहले से ही आरक्षण था। हम अपने आरक्षित डिब्बे में पहुंच गये और हमारी सीटें पहले से ही निर्धारित की जा चुकी थीं। हम अपनी निर्धारित की हुई सीटों पर आरामपूर्वक बैठ गए। हमारी तरह ही सब लोग भी अपनी-अपनी निर्धरित सीटों पर जाकर बैठ रहे थे। गाड़ी को शिमला के लिए प्रस्थान में अभी 15 मिनट थीं। गार्ड के सिटी बजाने और हरी झंडी दिखाने पर 15 मिनट के बाद रेलगाड़ी ने शिमला के लिए प्रस्थान किया।

रेल के अंदर का दृश्य : रेलगाड़ी को शिमला के लिए प्रस्थान में अभी 15 मिनट थीं तो मैं अपने डिब्बे से बाहर आकर सामान्य डिब्बे की तरफ देखने लगा। वहाँ पर किसी मेले जितनी भीड़ थी जिसे देखकर मैं हैरान रह गया। मुंबई रेलवे स्टेशन पर बहुत चहल-पहल थी जो हमारी आँखों से थोड़ी सी देर में ही ओझल हो गयी थी।

रेलगाड़ी अपनी दुत गति से लगातार आगे बढती जा रही थी। मेरी बर्थ के सामने मेरी ही उम्र का एक और लड़का बैठा हुआ था। मेरी तरह ही उसकी भी पहली रेलयात्रा थी। उसका नाम रिंकू था। हम सभी लोगों ने रात के समय साथ-साथ भोजन किया था और देर तक बातें भी की थीं।

फिर हम सभी ने अपनी-अपनी सीटों पर सूती चादर बिछाई और उस पर लेट गये। पिता जी ने पहले से ही दो तकियों को खरीद लिया था जिन्हें मैंने मुंह से हवा भरकर फुलाया था। जब मैंने अपनी आँखों को बंद किया तो रेलगाड़ी के चलने की लयात्मक ध्वनी को सुनकर मुझे बहुत आनंद मिल रहा था। कुछ देर बाद हमें नींद आ गयी।

रेल के बाहर पर्वतीय दृश्य : हम सभी लोग अपनी पहली यात्रा को करते समय बहुत खुश थे। मैं अपनी निर्धारित जगह पर बैठकर रेलगाड़ी से बाहर के दृश्य का आनंद ले रहा था। खिड़की से बाहर सभी तरह के दृश्य सामने आ रहे थे और वो अपने दर्शन देकर पीछे दूर जाकर छिप जाते थे।

उन दृश्यों को देखकर ऐसा लग रहा था मानो वे मेरे साथ आँख-मिचोली खेल रहे हों। मुझे अपनी पहली रेल यात्रा में बहुत आनंद आ रहा है। मुझे बाहर के दृश्य अत्यंत ही मोह लेने वाले लग रहे हैं। रेलगाड़ी से बाहर हरियाली से भरे खेतों का और महल तथा अट्टालिकाओं से भरे शहर का दृश्य बहुत ही मनमोहक लग रहा था।

हम एक पल खेतों से गुजर रहे होते हैं तो एक पल शहर से गुजर रहे होते हैं। इतने कम समय में इतनी विविधता मैंने पहले कभी नहीं देखी थी। हमारी रेलगाड़ी बड़े-बड़े शहरों, नगरों, खेतों, नदियों, और जंगलों को पार करती हुई तीसरे दिन सुबह शिमला पहुंची थी।

यात्रा का समापन : हमारी रेलगाड़ी अपने स्थान पर पहुंच गयी थी। रेलगाड़ी के अच्छी तरह से रुक जाने की वजह से हम अपना सामान नीचे उतार सके। वहाँ पर सामान को उठाने के लिए कुलियों की व्यवस्था थी। प्लेटफार्म पर उसी तरह की चहल-पहल थी जिस तरह की मुंबई में थी। वहाँ पर भी रेलगाड़ियों के आने-जाने के विषय में घोषणाएं हो रही थीं।

वहाँ पर चाय वाले, राशन वाले, नाश्ते वाले सामान को खरीदने के लिए विवश कर रहे थे। कुली हमारा सारा सामान प्लेटफार्म से बाहर ले आया और हमने सबसे पहले एक गाइड ढूंढा क्योंकि हमें शिमला का ज्ञान नहीं था। एक गाइड हमारे पास आया और हमने उसे अपनी योजना के विषय में बताया। तब उसने शिमला में हमारा मार्ग-दर्शन किया था। हमारी रेल यात्रा यहीं पर समाप्त हो गयी थी।

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