Meri Priya Pustak par nibandh likhiye
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पुस्तकें हमारे लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं । वे समय-समय पर एक अच्छे मित्र व गुरु की भूमिका अदा करती हैं । किसी व्यक्ति को जीवन में सफलता दिलाने में इनका बहुत बड़ा योगदान होता है ।
लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने सच ही कहा है कि ”मैं नरक में भी उत्तम पुस्तकों का आदर करूँगा क्योंकि इनमें वह शक्ति है जो नर्क में भी स्वर्ग का सुख प्रदान कर सकती है । वैसे तो मैंने अब तक अनेक पुस्तकें पढ़ी हैं परंतु इन सब मैं गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित ‘रामचरित-मानस’ ने मुझे अत्यधिक प्रभावित किया है ।”
‘रामचरितमानस’ मेरी सबसे प्रिय पुस्तक है, क्योंकि यह एक कहानी संग्रह मात्र ही नहीं है अपितु उससे अधिक है जिसमें दर्शन के साथ ही उत्तम चरित्र निर्माण हेतु सभी तत्व विद्यमान हैं । यह पुस्तक अयोध्या के राजा श्रीराम के जीवन चरित्र पर आधारित है जिन्हें हिंदूजन भगवान का अवतार मानते हैं ।
श्रीराम अयोध्या के राजा दशरथ के पुत्र थे । बचपन से ही वे बहुत प्रतिभावान थे । उनमें वे सभी गुण विद्यमान थे जो किसी आदर्श पुत्र में होने चाहिए । अपने पिता की इच्छा का सम्मान करते हुए वे 14 वर्ष के लिए अपने भाई लक्ष्मण तथा पत्नी सीता सहित वनवास के लिए गए ।
इस दौरान उन्हें अनेक असुरों से सामना करना पड़ा । श्री हनुमान जी भी वनवास के दौरान ही उनसे मिले । उनकी पत्नी को आततायी असुरराज रावण उठाकर ले गया । श्रीराम का रावण के साथ भयंकर युद्ध हुआ ।
अंत में श्री राम की विजय हुई तथा रावण सहित अनेक बड़ी आसुरी शक्तियों का नाश हुआ । उसके पश्चात् वनवास पूरा होने के उपरांत वे अपनी पत्नी व भाई सहित वापस अयोध्या लौट आए और अनेक वर्षों तक अयोध्या पर राज्य किया ।
मनुष्य के उत्तम चारित्रिक विकास के लिए ‘रामचरितमानस’ संसार की सर्वश्रेष्ठ पुस्तकों में से एक है । इसमें जीवन के लगभग सभी पहलुओं का समावेश है । दु:ख, सुख, घृणा, अहंकार, पितृभक्ति, प्यार, क्षमा, त्याग आदि सभी भाव इसमें मिलते हैं ।
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श्रीराम अयोध्या के राजा दशरथ के पुत्र थे । बचपन से ही वे बहुत प्रतिभावान थे । उनमें वे सभी गुण विद्यमान थे जो किसी आदर्श पुत्र में होने चाहिए । अपने पिता की इच्छा का सम्मान करते हुए वे 14 वर्ष के लिए अपने भाई लक्ष्मण तथा पत्नी सीता सहित वनवास के लिए गए ।
इस दौरान उन्हें अनेक असुरों से सामना करना पड़ा । श्री हनुमान जी भी वनवास के दौरान ही उनसे मिले । उनकी पत्नी को आततायी असुरराज रावण उठाकर ले गया । श्रीराम का रावण के साथ भयंकर युद्ध हुआ ।
अंत में श्री राम की विजय हुई तथा रावण सहित अनेक बड़ी आसुरी शक्तियों का नाश हुआ । उसके पश्चात् वनवास पूरा होने के उपरांत वे अपनी पत्नी व भाई सहित वापस अयोध्या लौट आए और अनेक वर्षों तक अयोध्या पर राज्य किया ।
मनुष्य के उत्तम चारित्रिक विकास के लिए ‘रामचरितमानस’ संसार की सर्वश्रेष्ठ पुस्तकों में से एक है । इसमें जीवन के लगभग सभी पहलुओं का समावेश है । दु:ख, सुख, घृणा, अहंकार, पितृभक्ति, प्यार, क्षमा, त्याग आदि सभी भाव इसमें मिलते हैं ।
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