meri yatra par nibadh
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Explanation:मेरी प्रथम रेल यात्रा पर निबंध |
प्रस्तावना:
स्थल यातायात में रेलगाड़ी का महत्त्वपूर्ण स्थान है । हमारे देश में सारे देश को रेल लाइनों से जोड़ दिया गया है । मै बस द्वारा तो कई बार यात्रा कर चुका था परन्तु रेल द्वारा यात्रा करने का अवसर मुझे कभी नहीं मिला था । विगत ग्रीष्मकालीन अवकाश में मैने प्रथम बार रेल द्वारा यात्रा की ।
बम्बई जाने का कार्यक्रम:
मेरे पिताजी सरकारी कर्मचारी हैं । उन्हे समय-समय पर अवकाश यात्रा की खूट मिलती है जिसको एल॰टी॰सी॰ कहते हैं । प्रत्येक सरकारी कर्मचारी समय-समय पर एल॰टी॰सी॰ पर यात्रा करते हैं । विगत ग्रीष्मावकाश पर मेरे पिताजी ने एल॰टी॰सी॰ पर बम्बई जाने का कार्यक्रम बनाया । इस अवसर पर हमने रेल द्वारा बम्बई जाने की योजना बनाई । यह मेरी प्रथम रेल यात्रा थी ।
यात्रा का शुभारम्भ:
ग्रीष्मावकाश पड़ने पर हम 20 मई को घर से नई दिल्ली रेलवे स्टेशन को चल पड़े । बिस्तरा व आवश्यक सामान लेकर हम टैक्सी द्वारा रेलवे स्टेशन पहुंचे । हमारी गाड़ी को प्लेटफार्म न. 10 पर खड़ा होना था । हम दस नम्बर प्लेटफार्म पर अपनी गाड़ी की प्रती क्षा के लिए बैच पर बैठ गए ।
हमारी गाड़ी ने प्रात: 7 बजे बम्बई को जाना था परन्तु ध्वनि प्रसारण यन्त्र से बताया गया कि बम्बई जाने वाली उक्त गाडी आज एक घण्टा विलम्ब से प्रस्थान करेगी । हम फिर अपने प्लेटफार्म पर इधर-उधर घूमने लगे । 8 बजे तक प्रतीक्षा करने के लिये समाचार-पत्र का अध्ययन करने लगे ।
प्लेटफार्म पर कई प्रकार की दुकाने उपलब्ध होती हैं । पत्र, पत्रिकाये व पुस्तक विक्रेता की दुकाने, फल वाले की दुकान, खाद्य सामग्री की दुकाने आदि । मैंने गाड़ी में पढ़ने के लिए एक पत्रिका ‘पराग’ व एक नन्दन खरीदी । 8 बजे क्षक-क्षक करते हुए रेलगाड़ी प्लेटफार्म दस पर पहुँच गयी ।
यात्रा का अनुभव:
हमारा पहले से ही आरक्षण था । अपने आरक्षित डिब्बे मे हम अपनी पूर्व निर्धारित सीट पर बैठ गए । हमारी ही तरह अन्य यात्री भी उस कम्पार्टमेट में अपनी-अपनी सीट पर आसीन होने लगे । अभी गाड़ी प्रस्थान में पन्द्रह मिनट शेष थे । मैने बाहर आकर सामान्य डिब्बे की ओर देखा । वहीं की भीड़ को देखकर मै दग रह गया ।
गार्ड ने सीटी बजाई और हरी झण्डी दिखाई । मैं फौरन अपने कम्पार्टमेट की ओर दौड़ पड़ा और अपनी सीट पर जा बैठा । गाड़ी शनै:-शनै: छुक-छुक करती हुई नई दिल्ली के स्टेशन से विदा हो गई । नई दिल्ली रेलवे स्टेशन की वह चहल-पहल देखते-देखते मेरी निगाह से ओझल हो गई ।
केवल रेलगाड़ी अपनी हुत गति से आगे बढ रही थी । मैं गाड़ी की खिड़की के पास बैठकर बाहर के दृश्यो को देखने का आनन्द ले रहा था । सभी प्रकार के दृश्य सामने आ रहे थे और तुरन्त ही दर्शन देकर पीछे को भाग कर क्षप जाते थे । प्रत्येक दृश्य मानो मेरे साथ आंख-मिचौली का खेल खेल रहे थे । मुझे मेरी प्रथम रेल यात्रा बड़ी आनन्ददायक लग रही थी ।
Answer:
Explanation:
Hi mate!
Please mark me as brainliest
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मेरी प्रथम रेल यात्रा पर निबंध |
प्रस्तावना:
स्थल यातायात में रेलगाड़ी का महत्त्वपूर्ण स्थान है । हमारे देश में सारे देश को रेल लाइनों से जोड़ दिया गया है । मै बस द्वारा तो कई बार यात्रा कर चुका था परन्तु रेल द्वारा यात्रा करने का अवसर मुझे कभी नहीं मिला था । विगत ग्रीष्मकालीन अवकाश में मैने प्रथम बार रेल द्वारा यात्रा की ।
बम्बई जाने का कार्यक्रम:
मेरे पिताजी सरकारी कर्मचारी हैं । उन्हे समय-समय पर अवकाश यात्रा की खूट मिलती है जिसको एल॰टी॰सी॰ कहते हैं । प्रत्येक सरकारी कर्मचारी समय-समय पर एल॰टी॰सी॰ पर यात्रा करते हैं । विगत ग्रीष्मावकाश पर मेरे पिताजी ने एल॰टी॰सी॰ पर बम्बई जाने का कार्यक्रम बनाया । इस अवसर पर हमने रेल द्वारा बम्बई जाने की योजना बनाई । यह मेरी प्रथम रेल यात्रा थी ।
यात्रा का शुभारम्भ:
ग्रीष्मावकाश पड़ने पर हम 20 मई को घर से नई दिल्ली रेलवे स्टेशन को चल पड़े । बिस्तरा व आवश्यक सामान लेकर हम टैक्सी द्वारा रेलवे स्टेशन पहुंचे । हमारी गाड़ी को प्लेटफार्म न. 10 पर खड़ा होना था । हम दस नम्बर प्लेटफार्म पर अपनी गाड़ी की प्रती क्षा के लिए बैच पर बैठ गए ।
हमारी गाड़ी ने प्रात: 7 बजे बम्बई को जाना था परन्तु ध्वनि प्रसारण यन्त्र से बताया गया कि बम्बई जाने वाली उक्त गाडी आज एक घण्टा विलम्ब से प्रस्थान करेगी । हम फिर अपने प्लेटफार्म पर इधर-उधर घूमने लगे । 8 बजे तक प्रतीक्षा करने के लिये समाचार-पत्र का अध्ययन करने लगे ।
प्लेटफार्म पर कई प्रकार की दुकाने उपलब्ध होती हैं । पत्र, पत्रिकाये व पुस्तक विक्रेता की दुकाने, फल वाले की दुकान, खाद्य सामग्री की दुकाने आदि । मैंने गाड़ी में पढ़ने के लिए एक पत्रिका ‘पराग’ व एक नन्दन खरीदी । 8 बजे क्षक-क्षक करते हुए रेलगाड़ी प्लेटफार्म दस पर पहुँच गयी ।
यात्रा का अनुभव:
हमारा पहले से ही आरक्षण था । अपने आरक्षित डिब्बे मे हम अपनी पूर्व निर्धारित सीट पर बैठ गए । हमारी ही तरह अन्य यात्री भी उस कम्पार्टमेट में अपनी-अपनी सीट पर आसीन होने लगे । अभी गाड़ी प्रस्थान में पन्द्रह मिनट शेष थे । मैने बाहर आकर सामान्य डिब्बे की ओर देखा । वहीं की भीड़ को देखकर मै दग रह गया ।
गार्ड ने सीटी बजाई और हरी झण्डी दिखाई । मैं फौरन अपने कम्पार्टमेट की ओर दौड़ पड़ा और अपनी सीट पर जा बैठा । गाड़ी शनै:-शनै: छुक-छुक करती हुई नई दिल्ली के स्टेशन से विदा हो गई । नई दिल्ली रेलवे स्टेशन की वह चहल-पहल देखते-देखते मेरी निगाह से ओझल हो गई ।
केवल रेलगाड़ी अपनी हुत गति से आगे बढ रही थी । मैं गाड़ी की खिड़की के पास बैठकर बाहर के दृश्यो को देखने का आनन्द ले रहा था । सभी प्रकार के दृश्य सामने आ रहे थे और तुरन्त ही दर्शन देकर पीछे को भाग कर क्षप जाते थे । प्रत्येक दृश्य मानो मेरे साथ आंख-मिचौली का खेल खेल रहे थे । मुझे मेरी प्रथम रेल यात्रा बड़ी आनन्ददायक लग रही थी ।
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