Mewar saheli ka kalakar kon hai
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what?
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I can't understand
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मेवाड़ की चित्रकला काफ़ी लम्बे समय से ही लोगों का ध्यान आकर्षित करती रही है। यहाँ चित्रांकन की अपनी एक विशिष्ट परंपरा है, जिसे यहाँ के चित्रकार पीढ़ियों से अपनाते रहे हैं। 'चितारे'[1] अपने अनुभवों एवं सुविधाओं के अनुसार चित्रण के कई नए तरीके भी खोजते रहे। रोचक तथ्य यह है कि यहाँ के कई स्थानीय चित्रण केन्द्रों में वे परंपरागत तकनीक आज भी जीवित हैं। तकनीकों का प्रादुर्भाव पश्चिमी भारतीय चित्रण पद्धति के अनुरूप ही ताड़पत्रों के चित्रण कार्यों में ही उपलब्ध होता है। यशोधरा द्वारा उल्लेखित षडांग के संदर्भ एवं 'समराइच्चकहा' एवं 'कुवलयमाला' कहा जैसे ग्रंथों में 'दट्ठुम' शब्द का प्रयोग चित्र की समीक्षा हेतु हुआ है, जिससे इस क्षेत्र की उत्कृष्ट परंपरा के प्रमाण मिलते हैं। ये चित्र मूल्यांकन की कसौटी के रूप में प्रमुख मानक तथा समीक्षा के आधार थे।