MideA ka prabhav in hindi essay
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'मीडिया' यानि संचार या माध्यम है जो मनुष्य के जीवन का अटूट अंग बन गया है। मानव सामाजिक प्राणी है अतः वह सदा किसी के संपर्क मे रहना चाहता है।
बाहरी दुनिया की घटनाओं की जानकारी समाचारपत्रों ,रेडियो,टेलीविजन,
पत्रिकाओं से आसानी से मिल जाती है।
मीडिया के ये सभी प्रकार, हमारे समाज को प्रभावित करतें हैं। अपने इर्द गिर्द होने वाले अच्छे बुरे सभी विषयों को जानने की मनुष्य की इस भूख को मीडिया कुछ अपने ही ढंग से शान्त करती है।माना मीडिया ने समाज को कई दृष्टिकोण से जागरूख बनाया है, हर नागरिक को अपने हक और कर्तव्यों से परिचित कराया है लेकिन मीडिया ने जहाँ समाज का उद्धार किया वहाँ पतन की ओर भी चेष्टा की है।
अब अनावश्यक जानकारी ,असम्बन्धित् विषयों में उलझना, बात बात पर बहस और दूसरों का अनादर, बहुरूपिया मीडिया की परिभाषा बन चली है।
समाज को संगठित करने के बजाय लोगों में फूट पैदा करना मीडिया का कर्त्तव्य बनता दिख रहा है । अनगिनत संपर्क माध्यमों ने लोगों की सोच पर पर्दा डाल दिया है। तरक्खी की होड़ में लोगों की भावनाओं का खिलवाड़ हो रहा है। खुले आम एक दूसरे पर कीचड़ उछाल रहें हैं। बिना सोचे समझे मीडिया पर विश्वास कर नैतिक मार्ग से ही दूर भाग रहें हैं।
अनजाने मे ही मीडिया समाज की पतन का कारण बन रहा है। इस के भयंकर परिणामों से बचना हमारा कर्तव्य होना चाहिए । हमें एक साथ होकर मीडिया से उत्पन्न हो रहे उपद्रवों को समूल उखाड़ फ़ेक देना होगा। तभी इस समाज का सुधार हो सकेगा।
thanks
बाहरी दुनिया की घटनाओं की जानकारी समाचारपत्रों ,रेडियो,टेलीविजन,
पत्रिकाओं से आसानी से मिल जाती है।
मीडिया के ये सभी प्रकार, हमारे समाज को प्रभावित करतें हैं। अपने इर्द गिर्द होने वाले अच्छे बुरे सभी विषयों को जानने की मनुष्य की इस भूख को मीडिया कुछ अपने ही ढंग से शान्त करती है।माना मीडिया ने समाज को कई दृष्टिकोण से जागरूख बनाया है, हर नागरिक को अपने हक और कर्तव्यों से परिचित कराया है लेकिन मीडिया ने जहाँ समाज का उद्धार किया वहाँ पतन की ओर भी चेष्टा की है।
अब अनावश्यक जानकारी ,असम्बन्धित् विषयों में उलझना, बात बात पर बहस और दूसरों का अनादर, बहुरूपिया मीडिया की परिभाषा बन चली है।
समाज को संगठित करने के बजाय लोगों में फूट पैदा करना मीडिया का कर्त्तव्य बनता दिख रहा है । अनगिनत संपर्क माध्यमों ने लोगों की सोच पर पर्दा डाल दिया है। तरक्खी की होड़ में लोगों की भावनाओं का खिलवाड़ हो रहा है। खुले आम एक दूसरे पर कीचड़ उछाल रहें हैं। बिना सोचे समझे मीडिया पर विश्वास कर नैतिक मार्ग से ही दूर भाग रहें हैं।
अनजाने मे ही मीडिया समाज की पतन का कारण बन रहा है। इस के भयंकर परिणामों से बचना हमारा कर्तव्य होना चाहिए । हमें एक साथ होकर मीडिया से उत्पन्न हो रहे उपद्रवों को समूल उखाड़ फ़ेक देना होगा। तभी इस समाज का सुधार हो सकेगा।
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