Mithi वाणी के mahatva पर कबीर, तुलसी और rahim ke dohe likhiye
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hyy friend here is ur answer
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कबीर का दोहा
माला फेरत जुग गया, मिटा ना मन का फेर |
कर का मन का डारि दे, मन का मनका फेर ||
कबीर कहते हैं कि माला फेरने से कुछ
नहीं होता, असल में अपने मन में शुद्ध विचारों को भरो
| अगर आपके मन में कुविचार भरे पड़े हैं और फिर
भी तुम ईश्वर के नाम की माला जपते हो तो
कुछ नहीं होगा |
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रहीम क दोहा
साधु सराहै साधुता, जती जोखिता जान |
रहिमन साँचे सूर को, बैरी करे बखान ||
सज्जन लोग सज्जनता की प्रशंसा करते हैं,
योगी-संन्यासी लोग ध्यान-समाधि आदि
की प्रशंसा करते हैं; लेकिन सच्चे शूरवीर
की तो विपक्षी शत्रु भी प्रशंसा
करते हैं |
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#ar
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माला फेरत जुग गया, मिटा ना मन का फेर |
कर का मन का डारि दे, मन का मनका फेर ||
कबीर कहते हैं कि माला फेरने से कुछ
नहीं होता, असल में अपने मन में शुद्ध विचारों को भरो
| अगर आपके मन में कुविचार भरे पड़े हैं और फिर
भी तुम ईश्वर के नाम की माला जपते हो तो
कुछ नहीं होगा |
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साधु सराहै साधुता, जती जोखिता जान |
रहिमन साँचे सूर को, बैरी करे बखान ||
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योगी-संन्यासी लोग ध्यान-समाधि आदि
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