Mitra ke satsangati par patra
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महात्मा गांधी विद्यालय
दरियागंज दिल्ली
दिनांक 4 मई 2018
प्रिय भाई मोहन,
तुम जैसे बुद्धिमान बालक को शिक्षा देने की आवश्यकता मैंने अब तक नहीं समझी थी। किंतु उस दिन तुम्हारे सहपाठी रमेश के मुख से मैंने जब सुना कि आजकल तुम कुछ ऐसे बालकों के साथ देखे जाते हो, जिनके साथ तुम्हारे मार्ग में कांटे होने वाला सिद्ध हो सकता है। यह सब जानकर मुझे आश्चर्य तो हुआ ही, बहुत दुख भी हुआ। इस अबोध अवस्था में तुम नहीं समझ सकते कि कुसंगति के कारण पड़ी एक ही बुरी लत जीवन भर रुलाने के लिए पर्याप्त होती है।
भैया, बचपन के यही दिन बनने या बिगड़ने के होते हैं। कोमल मन और अविकसित अंगों पर जो भला या बुरा प्रभाव पड़ जाता है, उसकी छाप जीवन भर रहती है। फिर क्यों बुरे प्रभावों से मन और जीवन को सदा के लिए मलिन किया जाए? क्यों ना इस आयु में अच्छे गुणों का संग्रह किया जाए जो जीवन की सबसे बड़ी संपत्ति होते हैं और हमेशा अपार लाभ प्रदान किया करते हैं।
मैंने जो थोड़ा लिखा, उसे बहुत समझना और उस पर आचरण करना। आदमी का अच्छा आचरण ही उसकी पहचान, उसका भावी जीवन बनाया करता है हमेशा याद रखना। माताजी और पिताजी को उस शुभ क्षण की प्रतीक्षा में हैं जब हमारा मोहन अपने सद्गुणों से सबको मोह लेगा। उसे पहले की तरह एक बार फिर से विद्यालय में अपने सदाचार के लिए प्रथम पुरस्कार मिल पाएगा। मैं सदा तुम्हारी उन्नति और प्रगति चाहता हूं।
तुम्हारा भाई
रमेश