Hindi, asked by gaurilalwani9, 1 year ago

mitrata ki kasoti par annuched​

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मित्रता एक पवित्र वस्तु है। संसार में सब कुछ मिल सकता है, परंतु सच्चा और स्वार्थहीन मित्र मिलना अत्यंत दुर्लभ है। जिस व्यक्ति को संसार मेें मित्र-रत्न मिल गया, समझो उसने अपने जीवन में एक बहुत ही बड़ी निधि पा ली। मनुष्य जब संसा में जीवन-च्रक प्रारभ करता है तो उसे सबसे अधिक कठिनाई मित्र खोजने में होती है। यदि उसका स्वभाव कुछ विचित्र नहीं तो लोगों से उसका परिचय बढ़ता जाता है और कुछ दिनों मंे यह परिचय ही गहरा होकर मित्रता का रूप धारण कर लेता है।

               एक सच्चा मित्र इस संसार में हमारा सबसे गड़ा आश्रय होता है। यह विपति में हमारी सहायता करता है, निराशा मे उत्साह देता है, जीवन में पवित्र बनाने वाला, दोषों को दूर करने वाला और माता के समान प्यार करने वाला होता है।

 

               ’एक अच्छा मित्र पाप से बचाता ह ै, अच्छे कामों मे लगाता है। मित्र के दोषों को छुपाता है, गुणोे को प्रकट करता है, विपति के समय उसका साथ देता है और समय पड़ने पर उसे सहायता भी देता है।’

                               विपति के समय ही मित्रता की वास्तविक पहचान होती है। संसार में सुख के समान तो अनेक तथाकथित मित्र मिल जाते हैं परंतु विषम परिस्थिति में कभी सहयोग नहीं देते। विपति काल में सहयोग देने वाले को ही सच्चा मित्र कहा जा सकता है।

                               महाकवि तुलसीदास ने आदर्श मित्र के निम्न लक्षण बताये हैं:

                                               जे ने मित्र दुःख होई दुखारी , तिनहि विलोकत पातक भारी।

                                               निज दुःख गिरि सम रज करि जाना, मित्र के दुःख रज मेरू समाना।

               वास्तव में मित्रता मानव-समाज की परमात्मा का सर्वाधिक मधुर और प्रिय वरदान है। संसार में यदि जलती-तपती दोपहरी मान लिया जाये तो मित्रता एक सघन शीतल छायादार वृक्ष है और यदि संसार को भंयकर मरूस्थल मान लिया जाए तो मित्रता उसमें एक सुरम्य हरा-भरा नखलिस्तान है। सांसरिक विषमताओं की आक्रांत परिस्थितियों में पीड़ित और अभावों से निराश-कातर व्यक्ति के लिए मित्र का प्रिय संसर्ग किसी भी जीवन मंत्र अथवा संजीवनी से कम महत्वपूर्ण नहीं है। धन, मान, सम्पति और विपुल सुख-साधनों के होते हुए भी यदि किसी व्यक्ति के पास अच्छे मित्र नहीं है तो वह निरा दरिद्र और अभागा ही है।

               प्रसिद्व विद्वान् सिसरों ने मित्र के महत्व को स्वीकारते हुए कहा है-

               श्थ्तपमदके जीवनही ंइेमदजए ंतम ेजपसस चतमेमदजरू जीवनही पद चवअमतजल जीमल ंतम तपबीय जीवनही ूमंाए लमज पद जीम मदरवलउमदज व िीमंसजी ंदक ूींज पे ेजपसस उवतम कपििपबनसज जव ंइेमदजए जीवनही कमंक जीमल ंतम ंसपअमण्श्

               अर्थात् मित्र चाहे अनुपस्थित हों, वे उपस्थित रहने के ही समान हैं, चाहे वे दरिद्र हों, धनवान होने के समान हैं, चाहे वे दुर्बल हों, स्वस्थ होने के समान हैं और यह बात मानना और भी अधिक कठिन मालूम होता है कि वे मरने पर भी जीवित होने के समान ही होते हैं।

               आपतिकाल मैत्री की कसौटी है। इसीलिए कहा गया है- ’’धीरज धरम मित्र अरू नारी, आपतिकाल परखिए चारी।’’ एक मित्र का कर्तव्य है कि आपतिकाल में वह अपने मित्र की तन-मन-धन से सेवा करे। जो लोग आपतिकाल में अपने मित्रों से मुंह मोड़ लेते हैं, वे मित्र कहलाने के अधिकारी नहीं हैं। ऐसे लोग मात्र स्वार्थी होते हैं। स्वार्थ सिद्व होते ही वे बात भी नहीं करते।

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