Modern education speech in hindi
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✨Hello! Here is your speech....✨
शिक्षा, ज्ञान, कौशल में सुधार करने और स्कूल में कुछ भी, कॉलेज, विश्वविद्यालय या अन्य शैक्षिक संस्थानों जो हमें एक शिक्षाप्रद अनुभव देता है के बारे में समझने की व्यवस्थित प्रक्रिया है।शिक्षा हमारे आसपास बातें सीखने का कार्य है। यह हमें आसानी से समझ सकते हैं और किसी भी समस्या से निपटने के लिए मदद करता है और हर पहलू में पूरे जीवन भर संतुलन बनाता है। शिक्षा हर इंसान का पहला और सबसे महत्वपूर्ण अधिकार है। शिक्षा के बिना हम अधूरे हैं और हमारे जीवन बेकार हैं। शिक्षा हमें एक लक्ष्य निर्धारित है और जीवन भर उस पर काम करके आगे जाने के लिए मदद करता है।
यह हमारे ज्ञान, कौशल, आत्मविश्वास के स्तर और व्यक्तित्व में सुधार। यह हमारे बौद्धिक रूप से हमारे जीवन में अन्य लोगों के साथ बातचीत करने के लिए कर सकती है। शिक्षा परिपक्वता लाता है और बदलते परिवेश के साथ समाज में रहने के लिए हमें सिखाता है। यह सामाजिक विकास, आर्थिक विकास और तकनीकी विकास के लिए रास्ता है।
✨PLEASE MARK AS BRAINLIEST✨
शिक्षा, ज्ञान, कौशल में सुधार करने और स्कूल में कुछ भी, कॉलेज, विश्वविद्यालय या अन्य शैक्षिक संस्थानों जो हमें एक शिक्षाप्रद अनुभव देता है के बारे में समझने की व्यवस्थित प्रक्रिया है।शिक्षा हमारे आसपास बातें सीखने का कार्य है। यह हमें आसानी से समझ सकते हैं और किसी भी समस्या से निपटने के लिए मदद करता है और हर पहलू में पूरे जीवन भर संतुलन बनाता है। शिक्षा हर इंसान का पहला और सबसे महत्वपूर्ण अधिकार है। शिक्षा के बिना हम अधूरे हैं और हमारे जीवन बेकार हैं। शिक्षा हमें एक लक्ष्य निर्धारित है और जीवन भर उस पर काम करके आगे जाने के लिए मदद करता है।
यह हमारे ज्ञान, कौशल, आत्मविश्वास के स्तर और व्यक्तित्व में सुधार। यह हमारे बौद्धिक रूप से हमारे जीवन में अन्य लोगों के साथ बातचीत करने के लिए कर सकती है। शिक्षा परिपक्वता लाता है और बदलते परिवेश के साथ समाज में रहने के लिए हमें सिखाता है। यह सामाजिक विकास, आर्थिक विकास और तकनीकी विकास के लिए रास्ता है।
✨PLEASE MARK AS BRAINLIEST✨
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किसी भी राष्ट्र अथवा समाज में शिक्षा सामाजिक नियंत्रण, व्यक्तित्व निर्माण तथा सामाजिक व आर्थिक प्रगति का मापदंड होती है । भारत की वर्तमान शिक्षा प्रणाली ब्रिटिश प्रतिरूप पर आधारित है जिसे सन् 1835 ई॰ में लागू किया गया ।
जिस तीव्र गति से भारत के सामाजिक, राजनैतिक व आर्थिक परिदृश्य में बदलाव आ रहा है उसे देखते हुए यह आवश्यक है कि हम देश की शिक्षा प्रणाली की पृष्ठभूमि, उद्देश्य, चुनौतियों तथा संकट पर गहन अवलोकन करें ।
इसके फलस्वरूप एक सदी तक अंग्रेजी शिक्षा के प्रयोग में लाने के बाद भी 1935 ई॰ में भारत की साक्षरता दस प्रतिशत के आँकड़े को भी पार नहीं कर पाई । स्वतंत्रता प्राप्ति के समय भारत की साक्षरता मात्र 13 प्रतिशत ही थी ।
इस शिक्षा प्रणाली ने उच्च वर्गों को भारत के शेष समाज में पृथक् रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई । ब्रिटिश समाज में बीसवीं सदी तक यह मानना था कि श्रमिक वर्ग के बच्चों को शिक्षित करने का तात्पर्य है उन्हें जीवन में अपने कार्य के लिए अयोग्य बना देना । ब्रिटिश शिक्षा प्रणाली ने निर्धन परिवारों के बच्चों के लिए भी इसी नीति का अनुपालन किया ।
शिक्षा के महत्व को समझते हुए भारतीय संविधान ने अनुसूचित जातियों व जनजातियों के लिए शिक्षण संस्थाओं व विभिन्न सरकारी अनुष्ठानों आदि में आरक्षण की व्यवस्था की । पिछड़ी जातियों को भी इन सुविधाओं के अंतर्गत लाने का प्रयास किया गया । स्वतंत्रता के बाद हमारी साक्षरता दर तथा शिक्षा संस्थाओं की संख्या में नि:संदेह वृद्धि हुई है परंतु अब भी 40 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या निरक्षर है ।
दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि स्वतंत्रता के बाद विश्वविद्यालयों में उच्च शिक्षा व प्राविधिक शिक्षा का स्तर तो बढ़ा है परंतु प्राथमिक शिक्षा का आधार दुर्बल होता चला गया । शिक्षा का लक्ष्य राष्ट्रीयता, चरित्र निर्माण व मानव संसाधन विकास के स्थान पर मशीनीकरण रहा जिससे चिकित्सकीय तथा उच्च संस्थानों से उत्तीर्ण छात्रों में लगभग 40 प्रतिशत से भी अधिक छात्रों का देश से बाहर पलायन जारी रहा ।
देश में प्रौढ़ शिक्षा और साक्षरता के नाम पर लूट-खसोट, प्राथमिक शिक्षा का दुर्बल आधार, उच्च शिक्षण संस्थानों का अपनी सशक्त भूमिका से अलग हटना तथा अध्यापकों का पेशेवर दृष्टिकोण वर्तमान शिक्षा प्रणाली के लिए एक नया संकट उत्पन्न कर रहा है ।
पूँजीवादी अर्थव्यवस्था के नए चेहरे, निजीकरण तथा उदारीकरण की विचारधारा से शिक्षा को भी ‘उत्पाद’ की दृष्टि से देखा जाने लगा है जिसे बाजार में खरीदा-बेचा जाता है । इसके अतिरिक्त उदारीकरण के नाम पर राज्य भी अपने दायित्वों से विमुख हो रहे हैं ।
हमारी वर्तमान शिक्षा प्रणाली गैर-तकनीकी छात्र-छात्राओं की एक ऐसी फौज तैयार कर रही है जो अंततोगत्वा अपने परिवार व समाज पर बोझ बन कर रह जाती है । अत: शिक्षा को राष्ट्र निर्माण व चरित्र निर्माण से जोड़ने की नितांत आवश्यकता है ।
Take any 3 to 4 para. But 1st and last para is important..
Remaining u take any para which is easy for u dude.
Hope this helps u dude
If this helped u can means mark me as brainliest..
All the best for ur speech competition
जिस तीव्र गति से भारत के सामाजिक, राजनैतिक व आर्थिक परिदृश्य में बदलाव आ रहा है उसे देखते हुए यह आवश्यक है कि हम देश की शिक्षा प्रणाली की पृष्ठभूमि, उद्देश्य, चुनौतियों तथा संकट पर गहन अवलोकन करें ।
इसके फलस्वरूप एक सदी तक अंग्रेजी शिक्षा के प्रयोग में लाने के बाद भी 1935 ई॰ में भारत की साक्षरता दस प्रतिशत के आँकड़े को भी पार नहीं कर पाई । स्वतंत्रता प्राप्ति के समय भारत की साक्षरता मात्र 13 प्रतिशत ही थी ।
इस शिक्षा प्रणाली ने उच्च वर्गों को भारत के शेष समाज में पृथक् रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई । ब्रिटिश समाज में बीसवीं सदी तक यह मानना था कि श्रमिक वर्ग के बच्चों को शिक्षित करने का तात्पर्य है उन्हें जीवन में अपने कार्य के लिए अयोग्य बना देना । ब्रिटिश शिक्षा प्रणाली ने निर्धन परिवारों के बच्चों के लिए भी इसी नीति का अनुपालन किया ।
शिक्षा के महत्व को समझते हुए भारतीय संविधान ने अनुसूचित जातियों व जनजातियों के लिए शिक्षण संस्थाओं व विभिन्न सरकारी अनुष्ठानों आदि में आरक्षण की व्यवस्था की । पिछड़ी जातियों को भी इन सुविधाओं के अंतर्गत लाने का प्रयास किया गया । स्वतंत्रता के बाद हमारी साक्षरता दर तथा शिक्षा संस्थाओं की संख्या में नि:संदेह वृद्धि हुई है परंतु अब भी 40 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या निरक्षर है ।
दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि स्वतंत्रता के बाद विश्वविद्यालयों में उच्च शिक्षा व प्राविधिक शिक्षा का स्तर तो बढ़ा है परंतु प्राथमिक शिक्षा का आधार दुर्बल होता चला गया । शिक्षा का लक्ष्य राष्ट्रीयता, चरित्र निर्माण व मानव संसाधन विकास के स्थान पर मशीनीकरण रहा जिससे चिकित्सकीय तथा उच्च संस्थानों से उत्तीर्ण छात्रों में लगभग 40 प्रतिशत से भी अधिक छात्रों का देश से बाहर पलायन जारी रहा ।
देश में प्रौढ़ शिक्षा और साक्षरता के नाम पर लूट-खसोट, प्राथमिक शिक्षा का दुर्बल आधार, उच्च शिक्षण संस्थानों का अपनी सशक्त भूमिका से अलग हटना तथा अध्यापकों का पेशेवर दृष्टिकोण वर्तमान शिक्षा प्रणाली के लिए एक नया संकट उत्पन्न कर रहा है ।
पूँजीवादी अर्थव्यवस्था के नए चेहरे, निजीकरण तथा उदारीकरण की विचारधारा से शिक्षा को भी ‘उत्पाद’ की दृष्टि से देखा जाने लगा है जिसे बाजार में खरीदा-बेचा जाता है । इसके अतिरिक्त उदारीकरण के नाम पर राज्य भी अपने दायित्वों से विमुख हो रहे हैं ।
हमारी वर्तमान शिक्षा प्रणाली गैर-तकनीकी छात्र-छात्राओं की एक ऐसी फौज तैयार कर रही है जो अंततोगत्वा अपने परिवार व समाज पर बोझ बन कर रह जाती है । अत: शिक्षा को राष्ट्र निर्माण व चरित्र निर्माण से जोड़ने की नितांत आवश्यकता है ।
Take any 3 to 4 para. But 1st and last para is important..
Remaining u take any para which is easy for u dude.
Hope this helps u dude
If this helped u can means mark me as brainliest..
All the best for ur speech competition
subhikshamrth39:
ok then u take 6 para.
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