Modern history from 1857 onwards of india in hindi
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31 मई क्रांति का दिन निर्धारित किया गया । रोटी और कमाल का फूल क्रांति का चिन्ह बनाया गया ।
विद्रोह की रणनीति अजीमुल्लाह और रघोजी बापू न बनाई थी
लेकिन क्रांति समय से पहले ही शुरू हो गई
29 मार्च 1857 को मंगल पांडे ने बैरकपुर मे अपने अधिकारियों हयूजन और गफ़ पर गोली चलाई । इस घटना का मुख्य कारण था भारतीय सैनिको से जबर्दस्ती चर्बीयुक्त कारतूस चलवाना ।
8 अप्रैल 1857 को मंगल पांडे को फांसी दे दी गई ।
23 अप्रैल 1857 को मेरठ के सभी सेनिकों ने कारतूस चलाने से माना कर दिया । सभी सेनिकों को जाईल मे डाल दिया गया ।
10 मई 1857 को मेरठ मे क्रांति की शुरुआत हुई ।
11 मई को विद्रोही दिल्ली पहुँचे ।
12 मई को बहादुर शाह को क्रांति का नेता घोषित कर दिया ।
धीरे धीरे यह विद्रोह लखनऊ , कानपुरऔर पूरे उत्तर भारत मे फ़ेल गया ।
दिल्ली मे नेत्रत्व बहादुर शाह जफर ने किया । इनका मुख्य सेनापति था बख़्त खान जिसने की सेना का नेत्रत्व किया । नाना साहब ने स्वयं को मुग़ल सम्राट का पेशवा बताया । यहा पर विद्रोह को दबाने के लिए अंग्रेज़ सेनापति निकलसन और हडसन थे ।
बरेली का नेत्रत्व खान बहादुर खान और बख़्त खान ने किया । यहा पर अंग्रेज़ अफसर विंसेट आयर था ।
लखनऊ मे क्रांति का नेत्रत्व बेगम हज़रत महल [ वाजिद अली शाह की पत्नी ] ने किया । साथ ने इनके बेटे बिरजिस कादिर भी थे, यहा पर अंग्रेज़ अधिकारी केम्पबेल ने इस विद्रोह को दबाया ।
झाँसी मे क्रांति की बागडोर रानी लक्षमी बाई और तात्या टोपे ने संभाली । झाँसी मे क्रांति को दबाने का काम हयूरोज ने किया था । हयूरोज ने कहा “ पूरे भारत मे केवल एक ही मर्द था जो है रानी लक्षमी बाई “
तात्या टोपे का वास्तविक नाम रामचन्द्र पांडुरंग था ।
कानपुर मे विद्रोह को संभाला नाना साहब ने । यहा पर भी अंग्रेज़ अधिकारी केम्पबेल था ।
नाना साहब का क्रांति का कूदने का मुख्य कारण उनकी पेंशन थी । नाना साहब का सहायक अजीमुल्लाह था । नाना साहब पेंशन की पैरवी के लिए लंदन भी गए । नाना साहब का असली नाम धुँधुपंत था और ये बाजीराव द्वितीय के दत्तक पुत्र थे ।
इलाहाबाद – लियाकत आली खान । अंग्रेज़ अधिकारी – कर्नल नील
जगदीशपुर – कुँवर सिंह । अंग्रेज़ – विलियम टेलर
फ़तेहपुर – अजीमुल्लाह
बहादुर शाह के हुमायु के मकबरे मे जाकर छिप गए जहा से उनको गिरफ्तार कर लिया । उनके दो बेटो को उनके सामने गोली मर दी गई । जफर पर मुक़दमा चलाया गया और उसे देश से निकाल कर रंगून भेज दिया गया जहा पर उसकी मौत हो गई । वही पर उसको दफना दिया ।
तात्या टोपे सिंधिया के सामंत के कारण पकड़े गए । सिंधिया के सामंत मानसिंह नरुका ने तात्या टोपे के जंगलो मे छुपे होने की खबर अंग्रेज़ो को दे दी । तात्या टोपे को जगले मे गिरफ्तार कर लिया और वही 1958 मे जंगल मे एक पेड़ पर लटका कर फांसी दे दी ।
वी डी सावरकर और अशोक मेहता ने इसे भारत की पहली क्रांति कहा है ।
बेंजामिन डिज़रायली ने इसे राष्ट्रिय विद्रोह कहा है ।
लॉरेंस और सिले ने इसे सैनिक विद्रोह कहा है ।
एन जी मजूमदार ने कहा की न तो यह पहला स्वतन्त्रता संग्राम था ना ही सैनिक विद्रोह था ये तो भारत मे राष्ट्रवाद का उदय था ।
इस क्रांति के कई परिणाम हुये । भारत का शासन ईस्ट इंडिया कंपनी से ब्रिटिश ताज के हाथो मे चला गया ।
एक भारत सचिव की नियुक्ति की गई । पहला भरता का सचिव चार्ल्स वूड था ।
भारत सचिव और भारत परिषद का कार्यालय इंडिया हाउस कहलाता था ।
सैनिक सुधार के लिए पील कमीशन का गठन किया गया ।
क्रांति के समय भारत का गवर्नर लॉर्ड कैनिंग था ।
विद्रोह की रणनीति अजीमुल्लाह और रघोजी बापू न बनाई थी
लेकिन क्रांति समय से पहले ही शुरू हो गई
29 मार्च 1857 को मंगल पांडे ने बैरकपुर मे अपने अधिकारियों हयूजन और गफ़ पर गोली चलाई । इस घटना का मुख्य कारण था भारतीय सैनिको से जबर्दस्ती चर्बीयुक्त कारतूस चलवाना ।
8 अप्रैल 1857 को मंगल पांडे को फांसी दे दी गई ।
23 अप्रैल 1857 को मेरठ के सभी सेनिकों ने कारतूस चलाने से माना कर दिया । सभी सेनिकों को जाईल मे डाल दिया गया ।
10 मई 1857 को मेरठ मे क्रांति की शुरुआत हुई ।
11 मई को विद्रोही दिल्ली पहुँचे ।
12 मई को बहादुर शाह को क्रांति का नेता घोषित कर दिया ।
धीरे धीरे यह विद्रोह लखनऊ , कानपुरऔर पूरे उत्तर भारत मे फ़ेल गया ।
दिल्ली मे नेत्रत्व बहादुर शाह जफर ने किया । इनका मुख्य सेनापति था बख़्त खान जिसने की सेना का नेत्रत्व किया । नाना साहब ने स्वयं को मुग़ल सम्राट का पेशवा बताया । यहा पर विद्रोह को दबाने के लिए अंग्रेज़ सेनापति निकलसन और हडसन थे ।
बरेली का नेत्रत्व खान बहादुर खान और बख़्त खान ने किया । यहा पर अंग्रेज़ अफसर विंसेट आयर था ।
लखनऊ मे क्रांति का नेत्रत्व बेगम हज़रत महल [ वाजिद अली शाह की पत्नी ] ने किया । साथ ने इनके बेटे बिरजिस कादिर भी थे, यहा पर अंग्रेज़ अधिकारी केम्पबेल ने इस विद्रोह को दबाया ।
झाँसी मे क्रांति की बागडोर रानी लक्षमी बाई और तात्या टोपे ने संभाली । झाँसी मे क्रांति को दबाने का काम हयूरोज ने किया था । हयूरोज ने कहा “ पूरे भारत मे केवल एक ही मर्द था जो है रानी लक्षमी बाई “
तात्या टोपे का वास्तविक नाम रामचन्द्र पांडुरंग था ।
कानपुर मे विद्रोह को संभाला नाना साहब ने । यहा पर भी अंग्रेज़ अधिकारी केम्पबेल था ।
नाना साहब का क्रांति का कूदने का मुख्य कारण उनकी पेंशन थी । नाना साहब का सहायक अजीमुल्लाह था । नाना साहब पेंशन की पैरवी के लिए लंदन भी गए । नाना साहब का असली नाम धुँधुपंत था और ये बाजीराव द्वितीय के दत्तक पुत्र थे ।
इलाहाबाद – लियाकत आली खान । अंग्रेज़ अधिकारी – कर्नल नील
जगदीशपुर – कुँवर सिंह । अंग्रेज़ – विलियम टेलर
फ़तेहपुर – अजीमुल्लाह
बहादुर शाह के हुमायु के मकबरे मे जाकर छिप गए जहा से उनको गिरफ्तार कर लिया । उनके दो बेटो को उनके सामने गोली मर दी गई । जफर पर मुक़दमा चलाया गया और उसे देश से निकाल कर रंगून भेज दिया गया जहा पर उसकी मौत हो गई । वही पर उसको दफना दिया ।
तात्या टोपे सिंधिया के सामंत के कारण पकड़े गए । सिंधिया के सामंत मानसिंह नरुका ने तात्या टोपे के जंगलो मे छुपे होने की खबर अंग्रेज़ो को दे दी । तात्या टोपे को जगले मे गिरफ्तार कर लिया और वही 1958 मे जंगल मे एक पेड़ पर लटका कर फांसी दे दी ।
वी डी सावरकर और अशोक मेहता ने इसे भारत की पहली क्रांति कहा है ।
बेंजामिन डिज़रायली ने इसे राष्ट्रिय विद्रोह कहा है ।
लॉरेंस और सिले ने इसे सैनिक विद्रोह कहा है ।
एन जी मजूमदार ने कहा की न तो यह पहला स्वतन्त्रता संग्राम था ना ही सैनिक विद्रोह था ये तो भारत मे राष्ट्रवाद का उदय था ।
इस क्रांति के कई परिणाम हुये । भारत का शासन ईस्ट इंडिया कंपनी से ब्रिटिश ताज के हाथो मे चला गया ।
एक भारत सचिव की नियुक्ति की गई । पहला भरता का सचिव चार्ल्स वूड था ।
भारत सचिव और भारत परिषद का कार्यालय इंडिया हाउस कहलाता था ।
सैनिक सुधार के लिए पील कमीशन का गठन किया गया ।
क्रांति के समय भारत का गवर्नर लॉर्ड कैनिंग था ।
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