mon nimantran kavita ka bhavarth
dijiye.
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सुमित्रानंदन पन्त ने 'मौन निमंत्रण' कविता की शुरुआत रात की प्रकृति से की है। वे लिखते हैं कि रात में चाँदनी फैली हुई थी। चाँदनी में किसी तरह की चंचलता नहीं थी, वह स्थिर थी। उस चाँदनी में डूबा हुआ संसार नादान शिशु की तरह चकित भाव से मानो सोया हुआ था।
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