Moral of poem vritha mat lo bharat ka naam by ramdhari singh dinkar
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this is very imotional memorable story so when i gave moral than i cry
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कविता का भावार्थ क्या होगा कृपा बताये
वृथा मत लो भारत का नाम।
मानचित्र में जो मिलता है, नहीं देश भारत है।
भू पर नहीं, मनों में ही, बस, कहीं शेष भारत है।।
भारत एक स्वप्न भू को ऊपर ले जानेवाला,
भारत एक विचार, स्वर्ग को भू पर लानेवाला।
भारत एक भाव, जिसको पाकर मनुष्य जगता है,
भारत एक जलज, जिस पर जल का न दाग लगता है।
भारत है संज्ञा विराग की, उज्जवल आत्म उदय की,
भारत है आभा मनुष्य की सबसे बड़ी विजय की।
भारत है भावना दाह जग-जीवन का हरने की,
भारत है कल्पना मनुज को राग-मुक्त करने की।
जहां कहीं एकता अखण्डित जहां प्रेम का स्वर है,
देश-देश में खड़ा वहां भारत जीवित, भास्वर है।
भारत वहां जहां जीवन-साधना नहीं है भ्रम में,
धाराओं को समाधान है मिला हुआ संगम में।
जहां त्याग माधुर्यपूर्ण हो, जहां भोग निष्काम,
समरस हो कामना, वहीं भारत को करो प्रणाम।
वृथा मत लो भारत का नाम।
- राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर'
नील कुसुम से साभार
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