Moral of thakur ka Kuan in Hindi
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In many ways the story has become dated. The rural India has undergone tremendous changes. The caste relations have become more horizontal and less vertical, though caste identities have sharpened with the rising political consciousness across the castes. New horizontal caste combinations and alliances are emerging to negotiate a space in the political power structure. Feudalism has been on the decline. Yet the important features of feudal India that Prem Chand portrays in this story still persist in the new and changing India. Exclusion and discrimination on the basis of caste are still endemic, and self-assertion by the lower castes often leads to violent retribution by the upper castes in many parts of the country, which goes unpunished by the state still heavily biased in favour of the upper castes, though with some exceptions. Women still remain at the receiving end because the society continues to be strongly patriarchal. And the rural rich and powerful, successors to the lost feudal world, are able to manipulate the state administration through connections, bribery, chicanery, and, above all, political clout............. Air ye bhi ho sakta hai....कहानी की शुरुआत जोखू और उसकी प्यास से होती है। उसकी पत्नी गंगी, जोखू के लाख मना करने, डराने पर भी अपने बीमार पति के लिए बदबूदार पानी की जगह शु( पानी लेने रात के नौ बजे ठाकुर के कुएँ पर जाती है। वहाँ उसे कुप्पी के मंद प्रकाश में बहुत से बेप्रिफक्र लोग एक जगह इकटठे दिखते हैं। वह कुएँ की जगह के पीछे अंध्ेरे में छिपकर बैठ जाती है। सबके चले जाने के बाद वह जल्दी-जल्दी कुएँ के जगत पर जाती है और घड़ा पानी में डूबोकर उसे ऊपर खींच लेती है और जैसे ही घड़े को जगत पर रखने को होती है, तभी अचानक ठाकुर का दरवाजा खुलता है और वह आतंकित हो उठती है। घबड़ाहट में उसके हाथ से रस्सी और घड़ा दोनों छुटकर कुएँ में गिर जाते हैं। घड़े के पानी में गिरने और उसके हलकोरों की आवाज सुनकर तथा ठाकुर के इतना कहते ही कि 'कौन है? कौन है? वह वहाँ से जान बचाने के लिए भाग खड़ी होती है। पर हाय! घर जाकर देखती है कि जोखू लोटा को मुँह से लगाये वही बदबूदार पानी पी रहा है। बड़ी जातियाँ छोटी जातियों के प्रति कितना क्रूर और निर्भय व्यवहार करती हैं, नीची जातियों में उनका आतंक किस हद तक व्याप्त है-इसका अहसास हमें इस कहानी से होता है।बड़ी जातियाँ छोटी जातियों के प्रति कितना क्रूर और निर्भय व्यवहार करती हैं, नीची जातियों में उनका आतंक किस हद तक व्याप्त है-इसका अहसास हमें इस कहानी से होता है।
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ठाकुर का कुआं कहानी की शिक्षा |
ठाकुर का कुआं मुंशी प्रेमचंद्र द्वारा लिखी गई है |
यह कहानी से हमें यह सिख देती है कि हमें यह कुप्रथा को खत्म कर देना चाहिए और सब को एक बराबर समझना चाहिए | यह जाती भेद-भाव खत्म कर देने चाहिए | भगवान से इंसान को एक जैसा बनाया है , हम लोग कोन होते यह भेद-भाव करने वाले |
इस कहानी में ग्रामीण परिवेश को लेकर ऊँची तथा नीची जाति का भेद-भाव किया है| किस प्रकार इस जाति के कारण वह अपने पति को पानी टिक नहीं पिला पाती |
कहानी की नायिका गंगी गांव के ठाकुरों के डर से अपने बीमार पति को स्वच्छ पानी तक नहीं पिला पाती है। कितने दुर्भाग्य की बात है कि यह कुप्रथा आज भी स्वतंत्रा भारत के हजारों गांवों में बदस्तूर जारी है।
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